तिथि: 17 अक्टूबर 2025 (शुक्रवार) एकादशी आरंभ: 16 अक्टूबर, सुबह 10:35 बजे एकादशी समाप्त: 17 अक्टूबर, सुबह 11:12 बजे पारण (व्रत खोलने का समय): 18 अक्टूबर, सुबह 6:23 से 8:40 तक यह एकादशी दिवाली से चार दिन पहले आती है, इसलिए इसका विशेष धार्मिक महत्व है।
रमा एकादशी को ‘पापमोचन एकादशी’ भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वजन्मों के पापों का क्षय होता है। कहा जाता है कि जो श्रद्धा से इस व्रत का पालन करता है, उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण में उल्लेख है कि रमा एकादशी का व्रत लक्ष्मी प्रसन्नता और धन-धान्य की प्राप्ति कराता है।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी “रमा एकादशी” कहलाती है। राजा मुचुकुंद और उनकी पुत्री चंद्रभागा की कथा इस व्रत से जुड़ी है। चंद्रभागा ने इस व्रत का पालन पूर्ण निष्ठा से किया, जिससे उसे पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस कथा से संदेश मिलता है कि सच्ची श्रद्धा और संयम से ही व्यक्ति आत्मशुद्धि पा सकता है।
दशमी से शुरू करें संयम: दशमी तिथि की शाम को सात्विक भोजन लेकर अगले दिन व्रत आरंभ करें।
एकादशी की सुबह: – स्नान के बाद विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। – तुलसी दल, फल, पुष्प, दीपक और धूप अर्पित करें। – "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। – रातभर जागरण करें और विष्णु भजन गाएँ।
द्वादशी को पारण करें: सुबह स्नान कर ब्राह्मणों को दान दें और स्वयं फलाहार लें।
इस व्रत से व्यक्ति को निम्नलिखित फल प्राप्त होते हैं: – सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति – घर में शांति, धन और सुख-समृद्धि – मानसिक स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति – भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है
व्रत के दौरान क्या न करे इस दिन निम्न बातों से बचें: – झूठ बोलना, क्रोध या विवाद करना – लहसुन, प्याज, मांसाहार, शराब का सेवन – देर रात सोना या उपवास तोड़ना – पारण समय चूकना
रमा एकादशी हमें सिखाती है कि श्रद्धा और संयम से किया गया व्रत आत्मा को पवित्र करता है। यह व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मन, वचन और कर्म की शुद्धि का अवसर है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु का ध्यान करें और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाएँ।