अर्थात भगवान श्रीविष्णु, जो शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं, जिनकी आकृति परम शांत और दिव्य है, संपूर्ण जगत के आधार हैं। उनकी नाभि में कमल विराजमान है, वे देवताओं के भी ईश्वर हैं और संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं। उनका वर्ण नीलमेघ के समान है, तथा उनके अंग परम सुंदर और आकर्षक हैं।
योगी जिनका ध्यान करके परम शांति को प्राप्त करते हैं, वे समस्त लोकों के स्वामी और जन्म-मरण के भय को समाप्त करने वाले हैं।ऐसे कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु, जो माँ लक्ष्मी के प्रियतम हैं, को हम कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं। उनका स्मरण जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। श्री हरि विष्णु की कृपा से भक्तों को मोक्ष और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है
अर्थात भगवान नारायण, जिनकी स्तुति स्वयं ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्गण दिव्य स्तोत्रों के माध्यम से करते हैं, जिनका गान वेदों द्वारा किया जाता है। सामवेद के गायक जिनकी महिमा का गुणगान करते हैं, वेदों के अंग, पद, क्रम और उपनिषद भी जिनकी महत्ता का बखान करते हैं।
योगीजन गहन ध्यान में लीन होकर जिनका साक्षात्कार करते हैं, और देवता एवं असुरगण जिनके अंत को जानने में असमर्थ रहते हैं, ऐसे परमपुरुष भगवान नारायण को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
श्रीगीता का अध्ययन करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है, आत्मिक शांति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
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