Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41 to 47 meaning in hindi

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: | स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: || 41 ||

अर्थात अर्जुन कहते हैं हे कृष्ण! अधर्म बहुत ज्यादा  बढ़ने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं, और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों  के दूषित होने से वर्णसंकर उत्पन्न हो जाते हैं।

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 42

सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च | पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: || 42 ||

अर्थात वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नर्क में ले  जाने वाले ही होते हैं। श्राद्ध और तर्पण न मिलने से यह कुलघातियों के  पितरों भी अपने स्थान से गिर जाते हैं।

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 43 44

दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: | उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: || 43 || उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन | नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम || 44||

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 43 44

अर्थात ऐसे वर्णसंकर उत्पन्न करने वाले पाप से  कुल-हत्यारों के सदा से चलते आये सनातन कुलधर्म और जाति-धर्म नाश पामेंगे।  हे जनार्दन! हमने सुना है कि जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं वे लम्बे समय  तक नरक में रहते हैं।

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 45

अर्थात अर्जुन कहते है,यह बड़े आश्चर्य और खेद की बात है  कि हमने घोर पाप करने का निश्चय कर लिया है, कि राज्य और सुख के लोभ में हम  अपने ही सगे-संबंधियों की हत्या करने पर उतारू हो गये हैं!

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् | यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: || 45 ||

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 46

अर्थात अर्जुन कहते हैं, अगर यह हाथों में अस्त्र-शस्त्र  लिए हुए धृतराष्ट्र के पक्ष में जो है, वे लोग युद्ध भूमि में सामना नहीं  करने वाले तथा शस्त्र रहित ऐसे मुझे मार भी डालें तो, वह मेरे लिए अत्यंत  ही लाभदायक होगा.

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: | धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || 46 ||

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 47

अर्थात संजय बोले, ऐसा कह कर शौक से व्याकुल मन वाले अर्जुन तीर सहित धनुष्य का त्याग करके युद्ध भूमि में रथ के मध्य भाग में बैठ गए।

सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् | विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: || 47 ||

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