Bhagavad Gita Quotes

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। Bhagavad Gita 2.47

योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।

योग में स्थिर रहकर अपने कर्तव्य का पालन करो और फल की आसक्ति त्याग दो।

विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।

ज्ञानी व्यक्ति सभी को समान दृष्टि से देखता है चाहे वह विद्वान हो, गाय, हाथी, या कुत्ता।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

सब प्रकार के धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा।

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।

मैं अपनी अव्यक्त रूप में सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हूँ

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु।

आत्मा रथ का स्वामी है, शरीर रथ है और बुद्धि उसका सारथी है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं अवतरित होता हूँ।