भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी या जलझूलनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं।
यह एकादशी पापों से मुक्ति और मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है। इस दिन व्रत और पूजा का विशेष पुण्य है।
व्रत विधि प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें, भगवान विष्णु का पूजन करें और रात्रि में जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा कथा के अनुसार, त्रेता युग में बलि नामक दानवीर राजा ने सभी लोकों पर अधिकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा वामन भगवान ने तीन पग भूमि मांगी। दो पग में ही उन्होंने धरती और आकाश नाप लिया और तीसरे पग पर बलि ने अपना शीश अर्पित किया।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा भगवान विष्णु ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और कहा कि चार माह बाद वे उसके द्वारपाल बनेंगे।
इस व्रत से जीवन के पाप नष्ट होते हैं, सुख-समृद्धि मिलती है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने और आत्मा की शुद्धि के लिए किया जाता है।