
भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहने वाले अनेक गुण हैं, लेकिन मुख्य 16 गुण जो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं, वे इस प्रकार हैं:
माता-पिता के आज्ञाकारी
भगवान श्रीराम अपने बचपन से ही माता-पिता के आज्ञाकारी रहे। जब दशरथ जी ने उन्हें 14 वर्षों के वनवास का आदेश दिया, तो वे चाहें तो इंकार कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने पिता के वचनों का सम्मान किया। राम जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए राज्य और सुख-सुविधाओं को त्याग दिया और कठिन वनवास स्वीकार किया। यही वजह है कि maryada purushottam Shri Ram को आज भी आदर्श पुत्र माना जाता है।
धैर्य रखने वाले
जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया, तब यदि श्रीराम चाहते तो उसी समय लंका पर आक्रमण कर सकते थे। लेकिन उन्होंने धैर्य का परिचय देते हुए पहले हनुमान जी को समझाने के लिए भेजा, फिर अंगद को संदेशवाहक बनाकर भेजा। जब रावण ने किसी की बात नहीं मानी, तभी अंत में युद्ध किया गया। यह दर्शाता है कि Ram ji ke gun में अपार धैर्य और संयम शामिल था।
साहसी और निडर
राम जी निडर और वीर थे। किसी भी परिस्थिति में उन्होंने कभी भय का अनुभव नहीं किया। चाहे सीता की खोज में कठिन वन में जाना हो या रावण जैसे शक्तिशाली शत्रु से युद्ध करना हो, उन्होंने हर चुनौती का साहसपूर्वक सामना किया। उनकी वीरता और कठिन निर्णय लेने की क्षमता उन्हें maryada purushottam का दर्जा दिलाती है।
न्यायप्रिय राजा
श्रीराम न्यायप्रिय राजा माने जाते हैं। त्रेतायुग में जब उनके राज्य के एक धोबी ने सीता जी के लंका में रहने पर प्रश्न उठाया, तब राम जी ने अपनी प्रजा की मर्यादा का पालन करने के लिए गर्भवती सीता को भी त्याग दिया। यह निर्णय बेहद कठिन था लेकिन उन्होंने जनता की मर्यादा को सर्वोपरि माना। यही कारण है कि उन्हें आदर्श और न्यायप्रिय राजा कहा जाता है।
उदार स्वभाव वाले
राम जी का स्वभाव बेहद उदार था। युद्ध के समय जब विभीषण, जो कि रावण का भाई था, श्रीराम के शरण में आया, तब उन्होंने बिना किसी संकोच के उसे अपना लिया। सामान्यतः कोई शत्रु के भाई को स्वीकार नहीं करता लेकिन Ram ji ke udaar swabhav ने यह संभव किया। यही उनकी महानता और उदारता को सिद्ध करता है।
चरित्रवान पुरुष
चरित्र की दृढ़ता श्रीराम के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी। जब रावण की बहन शूर्पणखा ने राम जी को विवाह का प्रस्ताव दिया, तब उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं और केवल सीता जी को देखकर जवाब दिया। यह घटना दर्शाती है कि Shri Ram ek achhe character wale purush the और उन्होंने जीवनभर केवल एक पत्नी का धर्म निभाया।
विनम्र और आभारी
राम जी विनम्र और आभारी स्वभाव के थे। जब उन्होंने रावण का वध किया, तब उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि जाओ और रावण से कुछ सीख लो क्योंकि वह भले ही दुष्ट था लेकिन ज्ञान में किसी से कम नहीं था। यह उनकी विनम्रता और बड़े को सम्मान देने की परंपरा को दर्शाता है।
आदर्श भाई
राम जी अपने चारों भाइयों के साथ आदर्श संबंध रखते थे। जब उन्हें वनवास जाना पड़ा, तब उन्होंने बिना किसी झिझक के भरत को अयोध्या का राजसिंहासन सौंप दिया। भाइयों के बीच प्रेम और एकता का भाव हमेशा बना रहा। इस कारण Shri Ram को आदर्श भाई भी कहा जाता है।
सत्य के मार्ग पर चलने वाले
राम जी ने हमेशा सत्य का पालन किया। उन्होंने कभी झूठ का सहारा नहीं लिया। उनके जीवन का हर कदम सत्य और धर्म के मार्ग पर आधारित था। यही कारण है कि स्वयं नारायण ने कहा कि सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है और राम जी ने इसे पूरी निष्ठा से निभाया।
धर्मनिष्ठ व्यक्ति
राम जी धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। वे हमेशा धर्म का पालन करते थे। चाहे युद्ध के मैदान में हों या वनवास के दौरान, उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों को निभाना कभी नहीं छोड़ा। वे केवल एक राजा ही नहीं बल्कि धर्म के मार्गदर्शक भी थे। यही वजह है कि लोग उन्हें dharm ke pratishthapak मानते हैं।
सहनशील स्वभाव वाले
श्रीराम सहनशीलता के प्रतीक थे। अगर कोई उन्हें अपशब्द कहता भी था, तो वे शांत रहते और मुस्कुराकर जवाब देते। उन्होंने कभी किसी को कठोर उत्तर नहीं दिया। उनका यह स्वभाव बताता है कि Ram ji ek tolerant aur dayaalu vyakti थे।
अपने भक्तों की रक्षा करने वाले
भगवान श्रीराम महान रक्षक माने जाते हैं। उन्होंने सदैव अपने भक्तों और साथियों की रक्षा की। उनका संकल्प था कि वे हर परिस्थिति में अपने लोगों को सुरक्षित रखें। यही कारण है कि वे maryada purushottam होने के साथ साथ rakshak devata के रूप में भी पूजे जाते हैं।
महान योद्धा
श्रीराम एक कुशल योद्धा थे। उन्होंने युद्ध में कभी छल या कपट का सहारा नहीं लिया। जबकि रावण ने सीता का अपहरण कर अधर्म किया, वहीं राम जी ने धर्म और वीरता से युद्ध लड़ा। उनकी युद्धकला और ईमानदारी उन्हें सच्चा बनाती है।
गुरु की सेवा करने वाले
राम जी गुरु की सेवा को सर्वोपरि मानते थे। वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे लेकिन फिर भी अपने गुरु वशिष्ठ जी और विश्वामित्र जी के चरण दबाते थे और उनका सम्मान करते थे। उनकी यह विनम्रता और गुरु भक्ति सभी के लिए आदर्श है।
दृढ़ निश्चय वाले
राम जी ने दृढ़ निश्चय किया था कि वे धरती से समस्त राक्षसों का संहार करेंगे। जब उन्होंने ऋषियों की हड्डियां देखीं, तब उन्होंने प्रण लिया कि वे किसी भी स्थिति में राक्षसों को समाप्त करेंगे। अपने इस वचन को उन्होंने अंत तक निभाया और दुनिया को राक्षसों से मुक्त किया।
सरल और सादगी से जीवन जीने वाले
श्रीराम भले ही भगवान विष्णु के अवतार थे, लेकिन उन्होंने अपने जीवन को बेहद सरलता से जिया। वे राजा होते हुए भी साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए, समुद्र के सामने हाथ जोड़कर मार्ग मांगा और सदैव मर्यादा का पालन किया। उनकी यही सादगी और सरलता उन्हें maryada purushottam Shri Ram बनाती है।
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