Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 11

क्या भगवान हर भक्त को उसके भाव के अनुसार स्वीकार करते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 11 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥११॥ अर्थात […]

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verese 10

राग भय और क्रोध से मुक्त होकर ईश्वर को कैसे पाया जा सकता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 10 वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ।।१०।। अर्थात भगवान कहते हैं, राग भय

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 9

भगवान के दिव्य जन्म और कर्म को जानने से क्या होता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 9 जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 8

क्या भगवान हर युग में अवतार लेते हैं धर्म की स्थापना के लिए?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 8 परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥ ८॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 7

भगवान कब लेते हैं अवतार? जानिए गीता का रहस्य, अध्याय 4 श्लोक 7

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 7 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ ७॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 6

ईश्वर अजन्मा होकर भी क्यों प्रकट होते हैं? जानें योगमाया का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 6 अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् । प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ॥६॥ श्री भगवान बोले यद्यपि मैं

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 5

श्रीकृष्ण को अपने सभी जन्म कैसे याद हैं? क्या हम भी जान सकते हैं अपने पूर्वजन्म?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 5 श्रीभगवानुवाचबहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन । तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 4

क्या ईश्वर समय से परे होते हैं? अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा!

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 4 अर्जुन उवाचअपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः । कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ॥४॥ अर्जुन बोले

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 3

क्या महिमा की चाह आज भी भक्त और भगवान के बीच दीवार बन रही है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 3 स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः । भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 2

क्या निःस्वार्थ सेवा ही सच्चा कर्मयोग है? श्रीमद्भगवदगीता अध्याय 4 श्लोक 2

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 2 एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप ॥ २॥ अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 1

क्या गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी परमात्मा की प्राप्ति संभव है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 1 श्रीभगवानुवाचइमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥१॥ अर्थात भगवान ने कहा, “मैंने

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 42 43

क्या ‘काम’ रूपी शत्रु को हराने के लिए आत्म-नियंत्रण ही सबसे बड़ा अस्त्र है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 42 43 इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन: |मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: || 42 ||एवं

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