Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 58 59 60

क्या साधक वास्तव में ‘इच्छा रहित’ हो सकता है? गीता क्या कहती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 58 59 60 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 58 ||विषया विनिवर्तन्ते […]

क्या साधक वास्तव में ‘इच्छा रहित’ हो सकता है? गीता क्या कहती है? Read Post »