Spiritual wisdom from Gita

Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 7

मान-अपमान को समान भाव से कैसे स्वीकारें? गीता क्या सिखाती है?

Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 7 जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः । शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥७॥ जिसने अपने आप पर विजय […]

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Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 4

क्या आसक्ति-मुक्त जीवन ही सच्चे योग की पहचान है?

Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 4 यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते । सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥४॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जिस

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Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 1

क्या कर्म करते हुए अनासक्त रहना ही संन्यास कहलाता है?

Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 1 श्रीभगवानुवाचअनाश्रितः कर्मफलं कार्य कर्म करोति यः । स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न

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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 25

कैसे समाप्त होते हैं हमारे राग-द्वेष और संशय? गीता देती है उत्तर

Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 25 लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः ।छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥२५॥ जिनके शरीर, मन, बुद्धि और इन्द्रियाँ

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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 23

भगवद् गीता में क्यों कहा गया है कि जो काम-क्रोध को सहन करता है वही योगी है?

Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 23 ‘शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् । कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥२३॥ जो

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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 18

क्या सबमें समान परमात्मा को देखना ही सच्ची समता है? – श्रीकृष्ण की शिक्षा

Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 18 विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥१८॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 40

गीता के अनुसार संशयी व्यक्ति का क्या होता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 40 अज्ञश्चाश्रद्धानश्च संशयात्मा विनश्यति । नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥४०॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26

गीता के अनुसार दैवयज्ञ और इन्द्रिय संयम रूपी यज्ञ क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26 दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥२५॥श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति । शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 17

कर्म अकर्म और विकर्म का असली अर्थ क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 17 कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः । अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥१७॥ अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 11

क्या भगवान हर भक्त को उसके भाव के अनुसार स्वीकार करते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 11 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥११॥ अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 9

भगवान के दिव्य जन्म और कर्म को जानने से क्या होता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 9 जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 1

क्या गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी परमात्मा की प्राप्ति संभव है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 1 श्रीभगवानुवाचइमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥१॥ अर्थात भगवान ने कहा, “मैंने

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