Author name: Kajal Makwana

नमस्कार दर्शकों मित्रो मेरा नाम Kajal Makwana है, में एक ब्लॉगर और यूट्यूबर हूं, तथा में आध्यात्मिकता (Spirituality) की श्रेणी में कंटेंट लिखती हूं और यूट्यूब पर विडियोज भी बनाती हूं। मुझे सनातन धर्म के बारे में जानना, आध्यात्मिकता को गहराई से समझना और हमारे हिन्दू धर्म के शास्त्रों जैसे रामायण, महाभारत, श्रीमद भगवद गीता, पुराण, तथा वेदों को पढ़ना बहुत पसंद है। मेरा लक्ष्य है कि मेरे लेखों और वीडियो के माध्यम से आपको (दर्शकों) सच्ची आध्यात्मिकता का अनुभव करा सकू, और हम सब के मन में ईश्वर के प्रति प्रेम जागृत हो ऐसा कुछ कर सकू, तथा आध्यात्मिकता बढ़ने से समाज में शायद बुरे कर्म करने वाले कुछ समझे सके! और आने वाली पीढ़ी भी सनातन धर्म को गहराई से समझ सके। Follow me on: YouTube

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 35

गीता के अनुसार आत्मज्ञान से परमात्मा का अनुभव कैसे होता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 35 यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव । येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥३५॥ अर्थात भगवान कहते […]

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 34

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गुरु से ज्ञान प्राप्त करने की सलाह क्यों दी?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 34 तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ॥३४॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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Bhagavad Gita Chapter Verse 33

भगवद गीता में ज्ञानयज्ञ को सर्वोत्तम क्यों कहा गया है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 33 श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परंतप ।सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥३३॥ अर्थात भगवान कहते हैं, हे अर्जुन!

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 32

भगवद गीता में यज्ञ को मोक्ष का साधन क्यों कहा गया है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 32 एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे । कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥ ३२॥ अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 31

गीता के अनुसार यज्ञशिष्टामृतभुजः श्लोक का क्या अर्थ है और यज्ञ क्यों आवश्यक है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 31 यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् । नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥३१॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 29 30

गीता में प्राणायाम रूपी यज्ञ क्या है और इससे पाप कैसे नष्ट होते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 29 30 अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ॥२९॥अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ।

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 28

गीता के अनुसार द्रव्ययज्ञ तपोयज्ञ योगयज्ञ और ज्ञानयज्ञ क्या हैं?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 28 द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे । स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥२८॥ अर्थात भगवान कहते हैं, अन्य अनेक प्रशंसनीय

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 27

क्या समाधि में इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाएँ पूरी तरह रुक जाती हैं

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 27 सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥२७॥ अर्थात भगवान कहते हैं, अन्य योगीजन समस्त इन्द्रियों

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26

गीता के अनुसार दैवयज्ञ और इन्द्रिय संयम रूपी यज्ञ क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26 दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥२५॥श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति । शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 24

भोजन रूपी क्रिया को यज्ञ कैसे बनाया जा सकता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 24 ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।ब्रह्मव गन्तव्यं तेन ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥२४॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23

गीता के अनुसार सच्चा कर्मयोगी कौन कहलाता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23 गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥२३॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जिसकी आसक्ति

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 22

क्या सफलता-असफलता में समभाव रखने से जीवन के तनाव से मुक्ति मिल सकती है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 22 यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः । समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥२२॥ अर्थात भगवान कहते

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