Bhagavad Gita Life Lessons

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 2

क्या निःस्वार्थ सेवा ही सच्चा कर्मयोग है? श्रीमद्भगवदगीता अध्याय 4 श्लोक 2

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 2 एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप ॥ २॥ अर्थात […]

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 42 43

क्या ‘काम’ रूपी शत्रु को हराने के लिए आत्म-नियंत्रण ही सबसे बड़ा अस्त्र है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 42 43 इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन: |मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: || 42 ||एवं

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 41

क्या इंद्रियों पर नियंत्रण ही कामनाओं के विनाश की पहली शर्त है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 41 तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।पाप्मानं प्रजहि ह्यनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥ ४१ ॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 38

क्या बढ़ती इच्छाएँ हमारे विवेक और आत्मिक विकास को रोक रही हैं?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 38 धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥ ३८ ॥ अर्थात भगवान कहते हैं जैसे

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 37

क्या इच्छाएं ही हमारे सभी दुखों और पापों की जड हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 37 श्रीभगवानुवाचकाम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥ ३७ ॥ श्री भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 33

क्या हमारा स्वभाव ही हमारे कर्मों का निर्धारक है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 33 सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥ ३३ ॥

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क्या आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता पर विश्वास ही मुक्ति का उपाय है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 31 ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥ ३१॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 28

क्या हम कर्ता हैं या प्रकृति का माध्यम?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 28 तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: |गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते || 28 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 27

क्या हम सच में अपने कर्मों के कर्ता हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 27 प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: |अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते || 27 || अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 25 26

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म करने की क्यों आवश्यकता है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 25 26 सक्ता: कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत |कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् || 25 ||न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |जोषयेत्सर्वकर्माणि

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भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने आलस्य के बारे में क्या कहा है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 23 24 यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रित: |मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: || 23

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 21

क्या श्रेष्ठ व्यक्ति के आचरण से ही समाज का मार्ग तय होता है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 21 यद्यदाचरति स श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥२१॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जो

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