इन्द्रियों को वश में करने से बुद्धि की स्थिरता कैसे प्राप्त होती है?

इन्द्रियों को वश में करने से बुद्धि की स्थिरता कैसे प्राप्त होती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 68

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 68 ||

अतः हे श्रेष्ठ! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ विषयों के द्वारा पूर्णतया वश में हो जाती हैं, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 68 Meaning in hindi

मन और इन्द्रियों को वश में करने के विषय को, जो साठवें श्लोक से चला आ रहा है, समाप्त करते हुए तस्मात शब्द से कहा गया है कि जिसका मन और इन्द्रियाँ संसार के आकर्षण से मुक्त हैं, उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।

यहाँ सर्वश: शब्द देने का तात्पर्य यह है कि संसार से व्यवहार करते समय या एकांत में चिंतन करते समय – किसी भी अवस्था में उसकी इन्द्रियाँ भोगों या विषयों में लिप्त नहीं होतीं। साधना काल में चाहे कितनी ही वस्तुएँ उसके संपर्क में आएँ, वे वस्तुएँ उसे विचलित नहीं कर सकतीं। इन्द्रियों के साथ-साथ उसका मन भी उसकी बुद्धि को विचलित नहीं कर सकता। जिस प्रकार कोई पर्वत को हिला नहीं सकता, उसी प्रकार उसकी बुद्धि इतनी दृढ़ हो जाती है कि मन उसे किसी भी अवस्था में हिला नहीं सकता। क्योंकि उसके मन में अब वस्तुओं का महत्व नहीं रह जाता।

निगृहीतानि

निगृहीतानि का अर्थ है कि इन्द्रियाँ विषयों से पूर्णतया वश में हो जाती हैं, अर्थात् विषयों में किंचितमात्र भी आसक्ति,या आकर्षण नहीं रहता। जैसे साँप के दाँत निकाल दिए जाएँ तो उसमें विष नहीं रहता। यदि वह किसी को काट भी ले तो उसका कोई प्रभाव नहीं होता। इसी प्रकार इन्द्रियों को आसक्ति से रहित कर देना उनके विषैले दाँत निकाल देने के समान है। तब उन इन्द्रियों में साधक को पतन के मार्ग पर ले जाने की शक्ति नहीं रहती।

यह भी पढ़ें : जन्म-मरण के बंधन से कैसे मुक्त हों?

इस श्लोक का अर्थ है कि साधक को यह दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि उसका उद्देश्य परब्रह्म को प्राप्त करना है, भोग-विलास करना नहीं। यदि साधक में ऐसी सावधानी निरन्तर बनी रहे तो उसकी बुद्धि स्थिर हो जाएगी।

जिनकी इंद्रियां सब प्रकार से वश में है, उनमें और साधारण मनुष्य में क्या अंतर होता है? इसका उत्तर हम अगले श्लोक में देखेंगे।

FAQs

इन्द्रियों को वश में करने से बुद्धि की स्थिरता कैसे प्राप्त होती है?

जब हम इन्द्रियों को विषयों (भोगों, आकर्षणों) से पूरी तरह हटाकर नियंत्रित कर लेते हैं, तब हमारी बुद्धि बाहरी परिस्थितियों से विचलित नहीं होती। गीता के अनुसार, जिस व्यक्ति की इन्द्रियाँ पूरी तरह संयमित होती हैं, उसकी प्रज्ञा (बुद्धि) स्थिर हो जाती है। वह व्यक्ति सांसारिक लालच, मोह और भ्रम से परे हो जाता है और उसका मन हर स्थिति में शांत और स्थिर बना रहता है।

क्या आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इन्द्रियों को नियंत्रित करना संभव है?

हाँ, यह संभव है — लेकिन इसके लिए निरंतर अभ्यास, ध्यान, और जीवन में संयम की आवश्यकता है। डिजिटल युग में जहां ध्यान भटकाना आसान है, वहाँ इन्द्रियों पर नियंत्रण ही आंतरिक शांति और स्पष्ट निर्णय क्षमता का आधार बनता है।

इन्द्रियों को वश में रखने का अभ्यास कैसे करें?

ध्यान और प्राणायाम द्वारा मन को स्थिर करना
सत्संग और आत्मचिंतन से आत्मज्ञान को बढ़ाना
विवेकपूर्ण दिनचर्या बनाकर विषयों से दूरी रखना
स्व-नियंत्रण (Self-discipline) के माध्यम से इन्द्रियों को संयमित करना

क्या सोशल मीडिया जैसे आधुनिक आकर्षण भी इन्द्रियों को भटका सकते हैं?

हाँ, सोशल मीडिया, विज्ञापन, अनावश्यक मनोरंजन — ये सब आज के युग के विषय हैं, जो इन्द्रियों को भटका कर मन को अशांत बनाते हैं। इनके अत्यधिक प्रयोग से ध्यान और निर्णय शक्ति कमज़ोर हो जाती है।

गीता के अनुसार स्थिर बुद्धि किसे कहते हैं?

स्थिर बुद्धि वह है जो सुख-दुख, लाभ-हानि, आकर्षण-विकर्षण में समान बनी रहती है। ऐसी बुद्धि वाले व्यक्ति की चेतना ऊँचे लक्ष्य (परब्रह्म) पर केंद्रित रहती है और वह संसारिक आकर्षणों से प्रभावित नहीं होता।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top