क्या दुर्योधन का आत्मविश्वास वास्तविक था या मात्र एक छलावा?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 7

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 7

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते || 7||

अर्थात दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहते हैं, हैं द्विजोतम! हमारे पक्ष में भी जो मुख्य है, उनके ऊपर भी आप ध्यान दीजिए! आपको याद दिलाने के लिए मेरी सेना के जो नायक है, उनको मैं कहता हूं।

Shrimad Bhagawat Geeta Chapter 1 Verse 7 Meaning

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम : दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहते हैं कि, है द्विजश्रेष्ठ! पांडवों की सेना में श्रेष्ठ महारथियों हैं, तो हमारी सेना में उनसे कम विशेषता वाले महारथी नहीं, बल्कि उनकी सेना के महारथियों की अपेक्षा से ज्यादा विशेषता रखने वाले हैं। उनको भी आप समझ लो।

नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते : दुर्योधन कहता है, हमारी सेना में भी जो विशिष्ट विशिष्ट सेनापति हैं, सेनानायक हैं, और महारथी हैं, मैं उनके नाम केवल आपको याद दिलाने के लिए, आपका ध्यान उस तरफ खींचने के लिए ही कह रहा हूं।

संग्यार्थम : इस पद का तात्पर्य है कि, हमारे कितने ही सेना नायक हैं! उनके नाम,  में कब तक कहूंगा? इसीलिए मैं उनका केवल संकेत मात्र करता हूं। क्योंकि आप तो सबको जानते ही हैं।

इस श्लोक में दुर्योधन का ऐसा भाव प्रतीत होता है कि, हमारा पक्ष किसी भी तरह कमजोर नहीं, बल्कि राजनीतिक मुताबिक शत्रु पक्ष चाहे कितना ही कमजोर हो और खुद का पक्ष चाहे कितना ही सबल हो, ऐसी अवस्था में भी शत्रु पक्ष को कमजोर नहीं समझना चाहिए। और खुद के पक्ष में उपेक्षा, निराशा, विगेरे भाव किंचित मात्र भी नहीं आने देना चाहिए। इसीलिए सावधानी के लिए उनके सैन्य की बात कही और अब अपनी सेना की बात कर रहा हूं।

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दूसरा भाव यह है कि पांडवों की सेना को देखकर दुर्योधन के ऊपर कुछ भारी प्रभाव पड़ा और उनके मन में कुछ ऐसा भय उत्पन्न हो गया है, क्योंकि संख्या में कम होने के बावजूद भी पांडव सेना के पक्ष में कितने ही धर्मात्मा पुरुष थे, और भगवान खुद भी थे।  जो पक्ष में धर्म और भगवान रहते हैं, उनका सब पर भारी प्रभाव पड़ता है। पापी में पापी और दुष्ट में दुष्ट व्यक्ति ऊपर भी उनका प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं पशु पक्षी, वृक्ष लता विगेरे ऊपर भी उनका प्रभाव पड़ता है। क्योंकि धर्म और भगवान नित्य हैं। कितनी ही बड़ी से बड़ी भौतिक शक्तियों क्यों ना हो? फिर भी वह है तो सभी अनित्य ही! इसीलिए दुर्योधन ऊपर पांडवसेना की कुछ ज्यादा ही असर पड़ी। परंतु उसके अंतर में भौतिक बल का विश्वास मुख्य होने से द्रोणाचार्य को विश्वास दिलाने के लिए कहता है कि, हमारे पक्ष में जितनी विशेषताएं है, उतनी पांडवों की सेना में नहीं इसीलिए हम उनके ऊपर सहज रीत से विजय प्राप्त कर सकते हैं।

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