क्या मनुष्य बिना कर्म के रह सकता है?
Bhagavad gita Chapter 3 Verse 5 न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: || 5 || अर्थात […]
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Bhagavad gita Chapter 3 Verse 5 न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: || 5 || अर्थात […]
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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 4 न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते |न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति || 4 || अर्थात भगवान कहते
क्या कर्म किए बिना निष्कर्मता और सिद्धि संभव है? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 3 Verse 3 श्रीभगवानुवाच |लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ |ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् || 3 || अर्थात
कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है – ज्ञानयोग या कर्मयोग? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 3 Verse 1 and 2 अर्जुन उवाच |ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन |तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव
अगर ज्ञान श्रेष्ठ है तो फिर कर्म क्यों करें? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 72 एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति |स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति || 72 || अर्थात भगवान
क्या अंतिम समय में भी शांति पाई जा सकती है? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 71 विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह: |निर्ममो निरहङ्कार: स शान्तिमधिगच्छति || 71 || अर्थात भगवान कहते
निर्मम निरहंकारी और नि:स्पृह व्यक्ति ही क्यों पाता है शांति? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 70 आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठंसमुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् |तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वेस शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ ७०॥ अर्थात भगवान
समुद्र जैसा संयम कैसे लाएं जीवन में? भगवद गीता से सीख Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 69 या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: ||
क्या यह संसार मात्र एक रात्रि की तरह क्षणिक है? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 68 तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 68 || अतः हे श्रेष्ठ! जिस
इन्द्रियों को वश में करने से बुद्धि की स्थिरता कैसे प्राप्त होती है? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 67 इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते |तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि || 67 || अर्थात भगवान् कहते
क्या असंयमित इंद्रियाँ हमारी बुद्धि को भटका देती हैं? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 66 नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् || 66 || अर्थात
क्या अशांत मन वाला व्यक्ति सच्चा सुख पा सकता है? Read Post »
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 64 65 रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् |आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति || 64 ||प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते |प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते
क्या राग-द्वेष से मुक्ति ही सच्चा सुख है? Read Post »