Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 40

क्या इन्द्रियाँ मन और बुद्धि ही काम का असली निवासस्थान हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Shloka 40 इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥ ४० ॥ अर्थात भगवान कहते हैं, इन्द्रियाँ, […]

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 39

क्या कामनाएं ही ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 39 आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥ ३९ ॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 38

क्या बढ़ती इच्छाएँ हमारे विवेक और आत्मिक विकास को रोक रही हैं?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 38 धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥ ३८ ॥ अर्थात भगवान कहते हैं जैसे

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 37

क्या इच्छाएं ही हमारे सभी दुखों और पापों की जड हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 37 श्रीभगवानुवाचकाम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥ ३७ ॥ श्री भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 36

क्या कोई अदृश्य शक्ति हमें पाप करने को मजबूर करती है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 36 अर्जुन उवाचअथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वाष्र्णेय बलादिव नियोजितः ॥ ३६

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 35

क्या दूसरों की राह अपनाना हमारी असफलता का कारण बन रहा है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 35 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥ ३५ ॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 34

क्या राग और द्वेष हमारे आध्यात्मिक विकास के सबसे बड़े शत्रु हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 34 इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ । तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥ ३४ ॥ अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 33

क्या हमारा स्वभाव ही हमारे कर्मों का निर्धारक है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 33 सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥ ३३ ॥

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 32

क्या भगवान की आज्ञा का उल्लंघन ही मनुष्य के पतन का कारण है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 32 ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥ ३२॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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क्या आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता पर विश्वास ही मुक्ति का उपाय है? Gita Chapter 3

क्या आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता पर विश्वास ही मुक्ति का उपाय है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 31 ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥ ३१॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 30

क्या निष्काम कर्म ही सच्चा अध्यात्म है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 30 मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥ ३०॥ अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 29

क्या ज्ञानी व्यक्ति को अज्ञानी लोगों को सत्कर्मों से विचलित करना चाहिए?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 29 प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु |तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् || 29 || अर्थात भगवान कहते हैं, प्रकृति

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