क्या अधर्म से उत्पन्न होता है वर्णसंकर?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: |
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: || 41 ||

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41 Meaning

अर्थात अर्जुन कहते हैं हे कृष्ण! अधर्म बहुत ज्यादा बढ़ने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं, और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर उत्पन्न हो जाते हैं।

क्या अधर्म से उत्पन्न होता है वर्णसंकर?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41 Meaning in hindi

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय:

धर्म का पालन करने से अंतःकरण शुद्ध हो जाता है। अन्तःकरण शुद्ध होने से बुद्धि सात्विक हो जाती है। सात्विक बुद्धि में विवेक सजग रहता है कि, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। लेकिन जब अधर्म बढ़ता है तो कर्म अशुद्ध होने लगते हैं, जिससे अंतःकरण अशुद्ध हो जाता है। जब अंतःकरण अशुद्ध हो जाता है, तो बुद्धि उदासीन हो जाती है। जब बुद्धि तामसिक हो जाती है तो मनुष्य अकर्तव्य को भी कर्तव्य और कर्तव्य को भी अकर्तव्य मानने लगता है। अर्थात् शास्त्र-मर्यादा के विरुद्ध विचार करने लगता है। इस विपरीत बुद्धि के कारण कुल की स्त्रियाँ भ्रष्ट अर्थात् व्यभिचारिणी हो जाती हैं।

स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर:

महिलाएं दूषित होने से वर्णसंकर बच्चे पैदा होते हैं। पुरुष और महिला दोनों अलग-अलग प्रजाति के होते हैं, इसलिए उनसे पैदा होने वाले बच्चों को वर्णसंकर कहा जाता है।

अर्जुन यहाँ ‘कृष्ण‘ सम्बोधित करके कह रहे हैं कि, आप सबको आकर्षित करने वाले होने के कारण ‘कृष्ण’ कहलाते हैं, अतः कृपा करके मुझे बताइये कि आप हमारे कुल को कहाँ आकर्षित करेंगे अर्थात् उन्हें कहाँ ले जायेंगे?

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वार्ष्णेय संबोधित करने का तात्पर्य यह है कि आप वृष्णि वंश में अवतार लेने के कारण आपको वार्ष्णेय कहा जाता है। लेकिन जब हमारा कुल नष्ट हो जाएगा तो हमारे वंशज किस कुल के कहलाएंगे? इसलिए कुल का नाश करना उचित नहीं है।

FAQs

अधर्म बढ़ने से स्त्रियों के दूषित होने का क्या तात्पर्य है?

जब समाज में अधर्म बढ़ता है तो नैतिकता और मर्यादा का पतन होता है, जिससे कुल की स्त्रियाँ भी अनैतिक मार्ग पर चलने लगती हैं।

वर्णसंकर संतान किसे कहा जाता है?

वर्णसंकर संतान वे होते हैं जो विभिन्न वर्णों (जातियों) के अनियमित मेल से उत्पन्न होते हैं, जिससे सामाजिक व्यवस्था में भ्रम पैदा होता है।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण को ‘वार्ष्णेय’ क्यों कहा?

अर्जुन ने श्रीकृष्ण को ‘वार्ष्णेय’ इसलिए कहा क्योंकि वे वृष्णि वंश में जन्मे थे, और अर्जुन उन्हें उनके वंश की मर्यादा की ओर ध्यान दिलाना चाहते थे।

अधर्म के प्रभाव से बुद्धि पर क्या असर होता है?

अधर्म से अंतःकरण अशुद्ध होता है, जिससे बुद्धि तामसिक और भ्रमित हो जाती है, और व्यक्ति गलत को सही समझने लगता है।

अर्जुन ने कुल नाश को क्यों अनुचित बताया?

अर्जुन ने कहा कि कुल नष्ट होने से धर्म, मर्यादा और वंशजों की पहचान समाप्त हो जाएगी, जो समाज के लिए घातक है।

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