
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 4
सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥४॥
अर्थात भगवान कहते हैं, सांख्य योग और कर्म योग को भिन्न फल देने वाला कहने वाले ज्ञानी नहीं, अज्ञानी लोग हैं, क्योंकि जो व्यक्ति इन दोनों में से किसी एक साधन में पारंगत है, वह दोनों के फलस्वरूप परमात्मा को प्राप्त होता है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 4 Meaning in hindi
सांख्य योग और कर्म योग को अलग मानना क्या अज्ञानता है?
–सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः
बाला: पद से भगवान यह कहते हैं कि आयुष्य और बुद्धि में बड़े होकर भी जो सांख्य योग और कर्म योग को अलग-अलग फल वाले मानते हैं वह बालक अर्थात समझने की शक्ति के बिना ही है।
जिन महापुरुषों ने सांख्ययोग और कर्मयोग के सिद्धांतों को भली-भाँति समझ लिया है, वे ही पंडित अर्थात् बुद्धिमान हैं। वे लोग दोनों को भिन्न फल देने वाला नहीं कहते, क्योंकि वे दोनों साधनों की व्यवस्था को नहीं, अपितु दोनों के वास्तविक फल को देखते हैं। साधन-व्यवस्था को देखते हुए स्वयं भगवान ने तीसरे अध्याय के तीसरे श्लोक में दो प्रकार के साधन माने हैं, सांख्ययोग और कर्मयोग। दोनों की साधन-व्यवस्था भिन्न है, परन्तु साध्य भिन्न नहीं है।
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क्या सांख्य योग और कर्म योग के फल अलग-अलग हैं?
–एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्
गीता में सांख्य योग और कर्म योग का फल, अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति, एक ही बताया गया है। तेरहवें अध्याय के चौबीसवें श्लोक में बताया गया है कि दोनों साधनों से मनुष्य अपने भीतर परमात्मा का अनुभव कर सकता है। तीसरे अध्याय के उन्नीसवें श्लोक में कर्मयोगी के लिए परमात्मा की प्राप्ति, बारहवें अध्याय के चौथे श्लोक में तथा तेरहवें अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में ज्ञानयोगी के लिए परमात्मा की प्राप्ति बताई गई है। इस प्रकार भगवान के अनुसार दोनों साधनों का फल एक ही है।
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