क्या संन्यास बिना कर्मयोग के संभव है?

क्या संन्यास बिना कर्मयोग के संभव है?

Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 6

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म चिरेणाधिगच्छति ॥६॥

अर्थात भगवान अर्जुन को कहते हैं, परन्तु हे महाबाहो! कर्मयोग के बिना संन्यास प्राप्त करना कठिन है। मननशील कर्मयोगी शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 6 Meaning in hindi

क्या संन्यास बिना कर्मयोग के संभव है?

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः

सांख्य योग की सफलता के लिए कर्म योग के साधनों का प्रयोग करना आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना सांख्य योग की सिद्धि कठिनाई से प्राप्त होती है, किन्तु यहाँ ‘तु’ शब्द से यही भाव व्यक्त किया गया है।

सांख्य योगी का लक्ष्य परमात्मा का अनुभव करना है, लेकिन यदि राग निरंतर रहता हो, तो इस माध्यम से परमात्मा का अनुभव कैसे होगा? इस माध्यम को समझना भी कठिन है।

राग को दूर करने का एक सरल उपाय कर्म योग का अभ्यास है। कर्म योग में प्रत्येक कर्म दूसरों के हित के लिए किया जाता है। चूँकि दूसरों के हित की भावना होती है, इसलिए राग स्वतः ही दूर हो जाता है। इसलिए कर्म योग के अभ्यास से राग को दूर करना और सांख्य योग का अभ्यास करना आसान है। कर्म योग के अभ्यास के बिना सांख्य योग की प्राप्ति कठिन है।

क्या राग का त्याग सिर्फ कर्मयोग से संभव है?

योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म चिरेणाधिगच्छति

कर्मयोगी प्रत्येक कर्म करते समय, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, यह देखता रहता है कि उसका संकल्प निष्फल है या सकाम। जैसे ही फल का संकल्प उत्पन्न होता है, वह उसे हटा देता है, क्योंकि फल का संकल्प उत्पन्न होते ही वह कर्म स्वयं के लिए और स्वयं का ही हो जाता है।

दूसरों का हित कैसे करें? इस प्रकार चिंतन करने से राग का परित्याग सहज ही हो जाता है।

उपरोक्त पद के माध्यम से भगवान कर्मयोग की विशेषता बता रहे हैं कि केवल कर्मयोगी ही परब्रह्म को प्राप्त करता है। परब्रह्म को प्राप्त करने में विलंब का कारण है, संसार का राग! बिना किसी इच्छा के तथा केवल दूसरों के लाभ के लिए कर्म करने से कर्म योगी का राग पूर्णतः लुप्त हो जाता है, तथा राग के पूर्णतः अभाव से परमात्मा की प्राप्ति स्वतः हो जाती है।

अब भगवान अगले श्लोक में कर्मयोगियों के लक्षण का वर्णन करते हैं।

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