
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 70
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं
समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ ७०॥
अर्थात भगवान कहते हैं, जैसे सभी नदियों का जल सब ओर से जल से भरा हुआ समुद्र में जाकर मिलता है, परंतु समुद्र अपनी मर्यादा में अचल और भव्य बना रहता है, उसी प्रकार संयमी व्यक्ति को भोग की सभी वस्तुएं बिना किसी विघ्न के उपलब्ध हो जाती हैं, वह व्यक्ति परम शांति को प्राप्त होता है, भोगों की इच्छा करने वाला नहीं।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 70 Meaning in hindi
क्या सुख-दुख से ऊपर उठा जा सकता है?
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्
वर्षा ऋतु में नदी-नालों का जल बहुत बढ़ जाता है, अनेक नदियों में बाढ़ आ जाती है, किन्तु जब वह जल चारों ओर से आकर जल से पूर्ण समुद्र से मिलता है, तब समुद्र बढ़ता नहीं और अपनी सीमा में ही रहता है। किन्तु जब ग्रीष्म ऋतु में नदी-नालों का जल बहुत कम हो जाता है, तब भी समुद्र घटता नहीं। तात्पर्य यह है कि जल के अधिक आने, कम आने, न आने तथा वडवानल (जल में उत्पन्न अग्नि) और सूर्य द्वारा जल को सोख लेने से समुद्र पर कोई फर्क नहीं पड़ता, वह बढ़ता या घटता नहीं। वह नदी-नालों के जल की अपेक्षा नहीं करता, वह सदैव ज्यों का त्यों भरा रहता है और अपनी सीमा कभी नहीं छोड़ता।
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जीवन में सच्ची शांति क्यों नहीं मिलती? जानिए गीता का गहरा उत्तर
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति
जैसे संसार के सभी सुख उस संयमी पुरुष को प्राप्त हो जाते हैं जो परमात्मा को जानता है और उसके समक्ष आता है, परंतु वे उसके तथाकथित शरीर और मन में सुख-दुख रूपी विघ्न उत्पन्न नहीं कर सकते, इसलिए उसे परम शांति प्राप्त होती है। उसे जो शांति प्राप्त होती है, वह परमात्मा के कारण होती है। सुख के विषयों के कारण नहीं (Ch 2/46)।
क्यों नहीं मिलती शांति भोग से?
न कामकामी
जिनके मन में भोगों की कामना है, जो केवल वस्तुओं को ही महत्व देते हैं, जिनकी दृष्टि वस्तुओं पर ही लगी रहती है, उन्हें चाहे कितनी ही सांसारिक वस्तुएं मिल जाएं, वे तृप्त नहीं हो सकते, उनकी कामनाएं, क्षोभ और दुःख दूर नहीं हो सकते, तो उन्हें शांति कैसे मिलेगी? क्योंकि चेतन मन की तृप्ति जड़ वस्तुओं से नहीं हो सकती।
FAQs
समुद्र जैसा संयम कैसे लाएं जीवन में? भगवद गीता से सीख
भगवद गीता कहती है कि जैसे समुद्र अचल रहता है, वैसे ही इच्छाओं के आने पर भी शांत और स्थिर रहना ही संयम है। ध्यान, आत्मचिंतन और त्याग की भावना से यह संभव है।
क्या इच्छाओं को दबाने से ही शांति मिलती है?
इच्छाओं को दबाना नहीं, बल्कि उन्हें समझकर पार कर जाना ज़रूरी है। गीता सिखाती है कि इच्छाओं से अप्रभावित रहना ही सच्ची शांति की ओर ले जाता है।
समुद्र की तरह स्थिर मन कैसे पाएं?
ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय और आत्मानुभूति से मन को इतना गहरा और स्थिर बनाया जा सकता है कि वह परिस्थितियों से प्रभावित न हो।
शांति पाने का असली मार्ग क्या है?
इच्छाओं में न बहना, बल्कि उनमें अचल रहना — यही मार्ग है शांति का। गीता का संदेश है: जो कामनाओं से अप्रभावित रहता है, वही सच्चा शांत पुरुष है।
क्या भौतिक सुखों से तृप्ति मिल सकती है?
नहीं। गीता के अनुसार, जो व्यक्ति केवल भोग की कामना करता है, वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। सच्ची तृप्ति आत्मज्ञान और आत्मसंयम में है।
क्या भोग-विलास से दुख दूर होता है?
नहीं। भोग-विलास क्षणिक सुख देता है, लेकिन अंत में वह क्षोभ, असंतोष और और अधिक कामनाएं उत्पन्न करता है।