Bhagavad Gita

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 30

क्या निष्काम कर्म ही सच्चा अध्यात्म है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 30 मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥ ३०॥ अर्थात भगवान कहते […]

क्या निष्काम कर्म ही सच्चा अध्यात्म है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 29

क्या ज्ञानी व्यक्ति को अज्ञानी लोगों को सत्कर्मों से विचलित करना चाहिए?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 29 प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु |तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् || 29 || अर्थात भगवान कहते हैं, प्रकृति

क्या ज्ञानी व्यक्ति को अज्ञानी लोगों को सत्कर्मों से विचलित करना चाहिए? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 28

क्या हम कर्ता हैं या प्रकृति का माध्यम?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 28 तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: |गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते || 28 || अर्थात

क्या हम कर्ता हैं या प्रकृति का माध्यम? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 27

क्या हम सच में अपने कर्मों के कर्ता हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 27 प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: |अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते || 27 || अर्थात भगवान कहते

क्या हम सच में अपने कर्मों के कर्ता हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 25 26

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म करने की क्यों आवश्यकता है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 25 26 सक्ता: कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत |कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् || 25 ||न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |जोषयेत्सर्वकर्माणि

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म करने की क्यों आवश्यकता है? Read Post »

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने आलस्य के बारे में क्या कहा है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 23 24 यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रित: |मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: || 23

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने आलस्य के बारे में क्या कहा है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 22

जब भगवान के लिए कोई कर्तव्य नही तो वे कर्म क्यों करते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 22 न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन । नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥

जब भगवान के लिए कोई कर्तव्य नही तो वे कर्म क्यों करते हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 21

क्या श्रेष्ठ व्यक्ति के आचरण से ही समाज का मार्ग तय होता है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 21 यद्यदाचरति स श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥२१॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जो

क्या श्रेष्ठ व्यक्ति के आचरण से ही समाज का मार्ग तय होता है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 20

क्या निष्काम कर्म ही परमात्मा की प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 20 कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय: |लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि || 20 || अर्थात भगवान कहते हैं, राजा

क्या निष्काम कर्म ही परमात्मा की प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 19

क्या बिना आसक्ति के किया गया काम हमें परमात्मा तक ले जा सकता है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 19 तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचर |असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुष: || 19 || अर्थात भगवान

क्या बिना आसक्ति के किया गया काम हमें परमात्मा तक ले जा सकता है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 18

क्या सच्चे कर्मयोगी को कोई कर्तव्य निभाने की आवश्यकता होती है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Shloka 18 नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन |न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रय: || 18 || अर्थात भगवान

क्या सच्चे कर्मयोगी को कोई कर्तव्य निभाने की आवश्यकता होती है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 17

जो व्यक्ति खुद में पूर्ण है, क्या उसे समाज की अपेक्षाओं की परवाह करनी चाहिए?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 17 यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानव: |आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते || 17 || अर्थात भगवान

जो व्यक्ति खुद में पूर्ण है, क्या उसे समाज की अपेक्षाओं की परवाह करनी चाहिए? Read Post »

Scroll to Top