क्यों भगवान ने युद्ध को स्वर्ग का द्वार कहा?
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 32 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ ३२॥ अर्थात भगवान कहते […]
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Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 32 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ ३२॥ अर्थात भगवान कहते […]
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Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 31 स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || 31 || अर्थात भगवान कहते
स्वधर्म निभाना क्यों है जीवन का सबसे बडा कर्तव्य? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 30 देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत |तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि || 30 || अर्थात
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से शोक न करने को क्यों कहा? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 29 आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य: |आश्चर्यवच्चैनमन्य: शृ्णोतिश्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् || 29 || अर्थात
क्या आपने कभी अपने ‘स्वरूप’ को स्वयं जाना है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 28 अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत |अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना || 28 || अर्थात भगवान कहते
क्या मृत्यु सच में अंत है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 27 जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || 27 ||
क्या हम जन्म और मृत्यु को टाल सकते हैं? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 25 26 अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते |तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि || 25 ||अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्
क्या बीज की तरह हर पल बदलता है हमारा शरीर? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 24 अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: || 24 || अर्थात भगवान कहते हैं,
क्या आत्मा पर मंत्र शस्त्र या शाप का असर होता है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 23 नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: |न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: || 23
शरीर नाशवान है आत्मा नहीं – क्या है इसका आध्यात्मिक विज्ञान? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहायनवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ||
क्या मृत्यु केवल पुराने वस्त्र बदलने जैसा ही एक परिवर्तन है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 21 वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् |कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् || 21
क्या मृत्यु पर शोक करना उचित है? गीता क्या कहती है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 20 न जायते म्रियते वा कदाचिनायं भूत्वा भविता वा न भूय: |अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणोन
शरीर और आत्मा में क्या अंतर है? Read Post »