Bhagavad Gita

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 31

गीता के अनुसार यज्ञशिष्टामृतभुजः श्लोक का क्या अर्थ है और यज्ञ क्यों आवश्यक है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 31 यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् । नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥३१॥ अर्थात भगवान कहते हैं, […]

गीता के अनुसार यज्ञशिष्टामृतभुजः श्लोक का क्या अर्थ है और यज्ञ क्यों आवश्यक है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 29 30

गीता में प्राणायाम रूपी यज्ञ क्या है और इससे पाप कैसे नष्ट होते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 29 30 अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ॥२९॥अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ।

गीता में प्राणायाम रूपी यज्ञ क्या है और इससे पाप कैसे नष्ट होते हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 28

गीता के अनुसार द्रव्ययज्ञ तपोयज्ञ योगयज्ञ और ज्ञानयज्ञ क्या हैं?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 28 द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे । स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥२८॥ अर्थात भगवान कहते हैं, अन्य अनेक प्रशंसनीय

गीता के अनुसार द्रव्ययज्ञ तपोयज्ञ योगयज्ञ और ज्ञानयज्ञ क्या हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 27

क्या समाधि में इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाएँ पूरी तरह रुक जाती हैं

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 27 सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥२७॥ अर्थात भगवान कहते हैं, अन्य योगीजन समस्त इन्द्रियों

क्या समाधि में इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाएँ पूरी तरह रुक जाती हैं Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26

गीता के अनुसार दैवयज्ञ और इन्द्रिय संयम रूपी यज्ञ क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26 दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥२५॥श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति । शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु

गीता के अनुसार दैवयज्ञ और इन्द्रिय संयम रूपी यज्ञ क्या है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 24

भोजन रूपी क्रिया को यज्ञ कैसे बनाया जा सकता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 24 ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।ब्रह्मव गन्तव्यं तेन ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥२४॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

भोजन रूपी क्रिया को यज्ञ कैसे बनाया जा सकता है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23

गीता के अनुसार सच्चा कर्मयोगी कौन कहलाता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23 गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥२३॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जिसकी आसक्ति

गीता के अनुसार सच्चा कर्मयोगी कौन कहलाता है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 22

क्या सफलता-असफलता में समभाव रखने से जीवन के तनाव से मुक्ति मिल सकती है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 22 यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः । समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥२२॥ अर्थात भगवान कहते

क्या सफलता-असफलता में समभाव रखने से जीवन के तनाव से मुक्ति मिल सकती है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 21

क्या निष्काम कर्मयोगी पाप से मुक्त रहता है? गीता का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 21 निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ॥२१॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जिस निष्काम

क्या निष्काम कर्मयोगी पाप से मुक्त रहता है? गीता का रहस्य Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 20

क्या आत्मा का वास्तव में कर्म और फल से कोई संबंध है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 20 त्यक्त्वा कर्मफलासङ्ग नित्यतृप्तो निराश्रयः ।कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ॥२०॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जो

क्या आत्मा का वास्तव में कर्म और फल से कोई संबंध है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 19

गीता के अनुसार सच्चा विद्वान किसे कहा गया है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 19 यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः । ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः ॥१९॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

गीता के अनुसार सच्चा विद्वान किसे कहा गया है? Read Post »

Bhagava Gita Chapter 4 Verse 18

कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखने का रहस्य क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 18 कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः । स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥१८॥ अर्थात

कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखने का रहस्य क्या है? Read Post »

Scroll to Top