महाभारत युद्ध में दुर्योधन की सबसे बडी ताकत कौन थे? जानिए इन महायोद्धाओं की कहानी

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 8

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय: |
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च || 8 ||

अर्थात दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहता है, आप (द्रोणाचार्य) और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा ऐसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत के पुत्र भूरिश्रवा भी हमारी सेना में है।

Bhagavad Gita Chapter 1

Shrimad Bhagawat Geeta Chapter 1 Verse 8 Meaning

भवान भीष्मश्च : दुर्योधन कहता है, आप (द्रोणाचार्य) और पितामह भीष्म दोनों बड़े ही विशेष पुरुषों हो! आप दोनों के समक्ष संसार में तीसरा कोई नहीं है। अगर आप दोनों में से कोई एक भी अपनी पूर्ण शक्ति लगाकर युद्ध करें, तो देवता, यक्ष, राक्षस, और मनुष्य में ऐसा कोई भी नहीं है कि, आपके सामने टिक सके। आप दोनों के पराक्रम की बात जगत में प्रसिद्ध है। पितामह भीष्म तो ए बाल ब्रह्मचारी है और इच्छा मृत्यु है अर्थात उनकी इच्छा के बिना उनको कोई मार ही नहीं सकता।

कर्णश्च : कर्ण तो बहुत ही शूरवीर है। मुझे तो ऐसा विश्वास है कि, वह अकेला ही पांडव सेना ऊपर विजय प्राप्त कर सकता है। उसके सामने अर्जुन भी कुछ नहीं कर सकता। ऐसा यह कर्ण हमारे पक्ष में है।

कृपश्च समितिञ्जय: : कृपाचार्य की तो बात ही क्या करनी! वे तो चिरंजीवी है। हमारे परम हितेरछु है। और समग्र पांडवों सेना ऊपर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

वैसे यहां पर द्रोणाचार्य और भीष्म के बाद दुर्योधन को कृपाचार्य का नाम लेना चाहिए था, परंतु दुर्योधन को कर्ण के ऊपर जितना विश्वास था, उतना कृपाचार्य ऊपर न था। इसीलिए कर्ण का नाम तो दुर्योधन के हृदय में से बीच में ही निकल पड़ा। द्रोणाचार्य और भीष्म कहीं कृपाचार्य का अपमान न समझ ले। इसीलिए दुर्योधन कृपाचार्य को संग्रामविजयी विशेषण देकर उनको प्रसन्न करना चाहते हैं।

अश्वत्थामा : अश्वत्थामा भी चिरंजीवी है, और आपके ही पुत्र हैं, वे तो बड़े ही शूरवीर हैं। उन्होंने आपके पास ही अस्त्र-शास्त्र की विद्या सीखी हैं। अस्त्र-शस्त्र की कला में वे बड़े ही चतुर हैं।

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विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च : दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहता है, आप ऐसा न समझना की मात्रा पांडव ही धर्मात्मा है। हमारे पक्ष में भी मेरा भाई विकर्ण बड़ा ही धर्मात्मा और शूरवीर है। ऐसे ही हमारे प्रपितामह शांतनु के भाई बाह्लीक के पोत्र तथा सोमदत के पुत्र भूरिश्रवा भी बड़े धर्मात्मा है। उन्होंने बड़े-बड़े दक्षिणा वाले अनेक यज्ञों किए हैं। वे बड़े ही शूरवीर और महारथी हैं।

यहां पर इन शूरवीरों के नाम लेने में दुर्योधन का ऐसा भाव दिख रहा है कि, हे आचार्य!  हमारी सेना में आप(द्रोणाचार्य) पितामह भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य वगैरह जैसे महान पराक्रमी शूरवीरों है, ऐसे पांडवों की सेना में देखने को नहीं मिलते। हमारी सेना में कृपाचार्य और अश्वत्थामा वे दोनों चिरंजीव हैं, जबकी पांडवों की सेना में ऐसा कोई भी नहीं। हमारी सेना में धर्मात्माओ की भी कमी नहीं! इस कारण हमें डरने की आवश्यकता नहीं है।

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Bhagavad Geeta Chapter 1 Shloka 8 Meaning ( Video )

कर्ण को दुर्योधन इतना महत्व क्यों देता है?

कर्ण को महान योद्धा मानते हुए दुर्योधन को विश्वास था कि वह अकेले ही पांडवों को हरा सकता है।

अश्वत्थामा कौन थे?

वे द्रोणाचार्य के पुत्र और चिरंजीवी योद्धा थे, जिन्होंने अस्त्र-शस्त्र में महान विद्या प्राप्त की थी।

विकर्ण कौन थे और क्यों विशेष थे?

विकर्ण दुर्योधन के भाई थे, जिन्हें धर्मनिष्ठ और शूरवीर योद्धा माना जाता था।

Who wrote bhagwat gita?

The Bhagavad Gita was written as part of the Mahabharata by the sage Vyasa. It is a sacred Hindu scripture featuring a dialogue between Lord Krishna and Arjuna, offering wisdom on duty, devotion, and self-realization.

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