
भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित एक प्राचीन और पवित्र हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (विष्णु के अवतार), उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा को समर्पित है। श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह अपनी भव्य रथयात्रा और समृद्ध इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर भारत के चार धामों में से एक है और हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। मंदिर ओडिशा की कला, संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक जीवंत प्रतीक है।
इस मंदिर का इतिहास 12वीं सदी का है, जब इसे गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था। मंदिर की वास्तुकला कलिंग शैली की है, और इसमें कई सुंदर मूर्तियां और नक्काशी हैं। मंदिर में कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान और उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिनमें रथयात्रा सबसे महत्वपूर्ण है।
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है, जो प्राचीन कलिंग साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंगा राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था। हालाँकि, मंदिर का वर्तमान स्वरूप 15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच बना है। इस दौरान, मंदिर को कई बार पुनर्निर्मित और विस्तारित किया गया। श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन का साक्षी रहा है, और यह ओडिशा के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदिर का इतिहास राजा इंद्रद्युम्न से भी जुड़ा है, जिन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति की खोज की थी। मंदिर की वर्तमान संरचना कलिंग वास्तुकला शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, और इसमें कई सुंदर मूर्तियां और नक्काशी हैं।
प्राचीन कलिंग साम्राज्य
मंदिर का प्रारंभिक निर्माण प्राचीन कलिंग साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था।
कलिंग काल में, मंदिर एक छोटे से संरचना के रूप में शुरू हुआ, लेकिन इसने धीरे-धीरे महत्व प्राप्त किया।
गंगा राजवंश का स्वर्णिम काल (
मंदिर का वर्तमान भव्य स्वरूप गंगा राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया था।
इस राजवंश के शासकों ने मंदिर के गोपुरम, मंडप और अन्य संरचनाओं का निर्माण करवाया, जिससे मंदिर की भव्यता में चार चांद लग गए।
ऐतिहासिक घटनाएँ और आक्रमण
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर ने कई ऐतिहासिक घटनाओं और आक्रमणों को देखा है, जिनमें मुस्लिम शासकों के आक्रमण और ब्रिटिश शासन शामिल है।
इन घटनाओं के बावजूद, मंदिर ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को बनाए रखा और पुनर्निर्माण के माध्यम से अपनी भव्यता को फिर से प्राप्त किया।
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर की वास्तुकला
मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो अपनी जटिल नक्काशी, ऊंचे गोपुरम और विस्तृत मंडपों के लिए जाना जाता है। मंदिर परिसर लगभग 400,000 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है, और यह एक ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर में कई गोपुरम (प्रवेश द्वार) हैं, जिनमें से प्रत्येक जटिल मूर्तियों और कलाकृतियों से सजा हुआ है। मंदिर के अंदर कई मंडप और मंदिर हैं, जिनमें से प्रत्येक अपनी अनूठी वास्तुकला और कलात्मकता के लिए जाना जाता है। मंदिर की वास्तुकला ओडिशा की कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।
गोपुरम की भव्यता
मंदिर के गोपुरम अपनी विशालता और जटिल मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के दृश्यों को दर्शाते हैं।
गोपुरम मंदिर की पहचान हैं और दूर से ही दिखाई देते हैं, जो भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर मूर्तियों की विविधता
मंदिर में देवताओं, राक्षसों और पौराणिक कथाओं की कई मूर्तियाँ हैं, जो विभिन्न कला शैलियों को दर्शाती हैं।
मंदिर की मूर्तियाँ न केवल कलात्मक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे हिंदू धर्म के धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों को भी दर्शाती हैं।
आधी बनी मूर्ति की कहानी
इसके पश्चात भगवान जगन्नाथ ने राजा से कहा कि समुन्द्र में तैरती हुई एक बड़ी लकड़ी को लाकर उनकी मूर्ति का निर्माण किया जाए| राजा ने अपने लोगों को लकड़ी लाने के लिए भेजा लेकिन कोई ही व्यक्ति उसे उठा नहीं पाया| तब राजा इंद्रदयूम्न ने सबर काबिले के मुखिया की सहायता ली| काबिले का मुखिया अकेला ही उस बड़ी लकड़ी को उठा कर ले आया|
इसके बाद भगवान विश्वकर्मा उससे मूर्ति का निर्माण करने के लिए एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में आये| विश्वकर्मा जी ने मूर्ति को बनाने के लिए 21 दिन का समय माँगा| तथा उनसे कहा कि 21 दिन तक उन्हें मूर्ति बनाते हुए कोई नहीं देखेगा|
किन्तु राजा के द्वारा इस शर्त का उल्लंघन करने पर भगवान विश्वकर्मा ने उन मूर्तियों को आधा ही छोड़ दिया| राजा इंद्रदयूम्न ने इसे भगवान जगन्नाथ की इच्छा मानकर उन आधी बनी हुई मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित कर दिया|
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर की रथयात्रा
मंदिर की रथयात्रा एक वार्षिक उत्सव है, जो आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस उत्सव में, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा को तीन विशाल रथों में बैठाकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। रथयात्रा लाखों भक्तों को आकर्षित करती है, और यह ओडिशा के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है।
रथों का निर्माण
रथयात्रा के लिए तीन विशाल रथों का निर्माण किया जाता है, जिन्हें लकड़ी और अन्य सामग्री से बनाया जाता है।
रथों को रंगीन कपड़ों और फूलों से सजाया जाता है, और वे बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगते हैं।
यात्रा मार्ग
रथयात्रा श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर से शुरू होती है और गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जो लगभग 3 किलोमीटर दूर है।
यात्रा मार्ग को भक्तों की भीड़ से भर दिया जाता है, और वे भगवान के दर्शन के लिए उत्सुक रहते हैं।