Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 5

क्यों अर्जुन ने भिक्षा को गुरुओं की हत्या से श्रेष्ठ माना?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 5 गुरूनहत्वा हि महानुभावान्श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैवभुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् || 5 || अर्थात […]

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 4

क्या अर्जुन की तरह हम भी अपनों के खिलाफ फैसले लेने से डरते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 4 अर्जुन उवाच |कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4 ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 3

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नपुंसकता क्यों कहा?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 3 क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप || 3 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 2

क्या कायरता धर्म स्वर्ग और यश से वंचित कर सकती है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 2 श्रीभगवानुवाच |कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन || 2 || अर्थात श्री भगवान बोले –

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 1

अर्जुन की करुणा देख श्रीकृष्ण ने क्या कहा?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 1 सञ्जय उवाच |तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: || 1 || अर्थात संजय बोले

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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 47

क्या मोह ने अर्जुन को वीर से वैरागी बना दिया?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 47 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: || 47 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 46

क्या आज के रिश्तों में अर्जुन जैसी त्याग भावना संभव है?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 46 यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: |धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || 46 || अर्थात अर्जुन कहते

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Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 45

क्या लोभ हमें अपनों की हत्या तक ले जा सकता है?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 45 अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: || 45 || अर्थात अर्जुन

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Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 43 44

क्या कुलधर्म और जातिधर्म का नाश मनुष्य को नरक की ओर ले जाता है?

दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: |उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: || 43 ||उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम || 44|| Shrimad Bhagavad Geeta

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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 42

गीता के अनुसार कुलधर्म का विनाश कैसे पितरों के विनाश का कारण बनता है?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 42 सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च |पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: || 42 || Shrimad Bhagavad

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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 41

क्या अधर्म से उत्पन्न होता है वर्णसंकर?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41 अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: |स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: || 41 || Shrimad Bhagavad Gita

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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 40

क्या अर्जुन का भय केवल मृत्यु का था या धर्म के पतन का?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 40 कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना: |धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत || 40 || Shrimad Bhagavad Gita

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