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शरीर नश्वर है पर आत्मा क्यों नहीं? जानिए गीता का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 17 अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् |विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति || 17 || अर्थात भगवान […]

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 16

क्या जो दिखता है वही सच है? गीता से जानिए असत्य और सत्य की पहचान

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 16 नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: |उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभि: || 16 || अर्थात भगवान कहते

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geeta for kids

बचपन में ही बच्चों में बोए गीता ज्ञान के बीज, जीवन भर मिलती रहेगी छांव

Gita Updesh: क्यों जरूरी है बच्चों को गीता ज्ञान देना? Srimad Bhagavad Gita केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 15

क्या सुख-दुख में समान रहना ही अमरता का मार्ग है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 15 यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते || 15 ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 14.

क्या इन्द्रियाँ ही हमारे सुख-दुख की जड हैं? गीता का उत्तर जानिए

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 14 मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा: |आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || 14 || अर्थात भगवान कहते हैं, हे कुंतीनंदन!

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 13

क्या मृत्यु के बाद जीवन सच में होता है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 13 देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || 13 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 11

क्या ममता और आसक्ति ही हमारे दुखों का मुख्य कारण हैं? गीता से जीवन का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 11 श्रीभगवानुवाच |अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: || 11 || अर्थात प्रभु ने कहा,

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भगवान कृष्ण अर्जुन की उदासी पर क्यों मुस्कुराए?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 10 तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत |सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: || 10 || अर्थात संजय कहते हैं,

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अर्जुन का यह निर्णय क्यों ? – ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा’

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 9 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप |न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 8

क्या सफलता और दौलत से दुख मिटता है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 8 न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् |अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् || 8 || अर्थात अर्जुन कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 7

क्या भगवान से मार्गदर्शन मांगना ही सच्चा समर्पण है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 7 कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव:पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: |यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मेशिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् || 7 ||

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