क्या मोह ने अर्जुन को वीर से वैरागी बना दिया?
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 47 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: || 47 || अर्थात […]
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Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 47 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: || 47 || अर्थात […]
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Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 46 यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: |धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || 46 || अर्थात अर्जुन कहते
क्या आज के रिश्तों में अर्जुन जैसी त्याग भावना संभव है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 45 अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: || 45 || अर्थात अर्जुन
क्या लोभ हमें अपनों की हत्या तक ले जा सकता है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 42 सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च |पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: || 42 || Shrimad Bhagavad
गीता के अनुसार कुलधर्म का विनाश कैसे पितरों के विनाश का कारण बनता है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 41 अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: |स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: || 41 || Shrimad Bhagavad Gita
क्या अधर्म से उत्पन्न होता है वर्णसंकर? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 36 37 निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीति: स्याज्जनार्दन |पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: || 36 ||तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् |स्वजनं
धर्म Vs ममता: अर्जुन क्यों नहीं करना चाहते थे युद्ध? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 34 35 आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: |मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिनस्तथा || 34 ||एतान्न
जब अपने ही विरोध में खड़े हों – अर्जुन की कहानी आज की कहानी क्यों है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 32 33 न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च |किं नो राज्येन गोविन्द
अर्जुन ने क्यों त्याग दिए विजय और सुख की कामना? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 31 निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव |न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे || 31 || Shrimad
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को क्यों नहीं दिख रहा था युद्ध में कोई लाभ? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 26 27 तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृ नथ पितामहान् |आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा || 26||श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि |तान्समीक्ष्य स कौन्तेय:
क्या अर्जुन का युद्ध न करने का विचार धर्म विरुद्ध था? गीता क्या कहती है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 24 25 सञ्जय उवाच |एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत |सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् || 24 ||भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां
अर्जुन का मोह जागृत करने के पीछे भगवान श्री कृष्ण का क्या उद्देश्य था? Read Post »
अर्जुन उवाच |सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत || 21|| यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् |कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे || 22|| Bhagavad Geeta Chapter 1
भगवद गीता में अर्जुन के युद्ध से पहले के विचार क्या थे? Read Post »