Indira Ekadashi Vrat Katha : इंदिरा एकादशी की संपूर्ण कथा और महत्व

Indira Ekadashi Vrat Katha : इंदिरा एकादशी की संपूर्ण कथा और महत्व

Indira Ekadashi Vrat Katha : इंदिरा एकादशी की संपूर्ण कथा और महत्व

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को विशेष स्थान प्राप्त है। वर्षभर आने वाली 24 एकादशियों में से अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से पितृपक्ष में आता है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन उपवास, पूजा-पाठ और कथा श्रवण करने से न केवल साधक को पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पितरों को भी वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

इस व्रत में भगवान विष्णु और माता पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही, पितरों की शांति और मुक्ति के लिए विशेष विधि से श्राद्ध एवं तर्पण करने का महत्व बताया गया है।

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

राजा इन्द्रसेन की कथा

सत्ययुग में माहिष्मतीपुरी में राजा इन्द्रसेन नामक एक धर्मपरायण शासक रहते थे। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे और धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते थे। वे नित्य गोविंद के मोक्षदायक नामों का जप करते और आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहते।

एक दिन जब राजा इन्द्रसेन अपने राजसभागृह में बैठे थे, तभी देवर्षि नारद स्वर्गलोक से वहां पधारे। राजा ने उनका सम्मानपूर्वक स्वागत किया और आगमन का कारण पूछा।

नारदजी ने बताया कि वे यमलोक से होकर आए हैं, जहां उन्होंने राजा इन्द्रसेन के पिता को देखा। उनके पिता व्रत भंग के कारण यमलोक में थे। उन्होंने नारदजी से संदेश भेजा कि—

“पुत्र! यदि तुम मेरे लिए इंदिरा एकादशी व्रत कर इसका पुण्य मुझे दान करोगे, तो मुझे स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी।”

नारदजी द्वारा व्रत विधि का वर्णन

नारदजी ने राजा इन्द्रसेन को इंदिरा एकादशी की विधि विस्तार से बताई:

1. दशमी तिथि का नियम – व्रत शुरू करने से एक दिन पूर्व यानी दशमी को प्रातः स्नान कर मध्याह्न में एक समय भोजन करें और रात में भूमि पर शयन करें।

2. एकादशी व्रत का संकल्प – प्रातःकाल स्नान कर दाँत-मुँह धोकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उपवास का संकल्प लें:

“आज मैं सब भोगों का परित्याग कर व्रत रखूँगा और कल भोजन करूँगा। हे अच्युत! मुझे शरण दीजिए।”

3. श्राद्ध एवं पितृ तर्पण – शालग्राम शिला के सम्मुख श्राद्ध करें और ब्राह्मणों को दक्षिणा व भोजन कराएं। पितरों के लिए बनाए गए पिण्ड को अंत में गाय को अर्पित करें।

4. भगवान विष्णु की पूजा एवं जागरण – धूप, दीप, पुष्प, गंध से भगवान विष्णु का पूजन करें और रात्रि में जागरण करें।

5. द्वादशी तिथि का नियम – अगले दिन प्रातः श्रीहरि की पुनः पूजा करें, ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं परिवार सहित मौन होकर भोजन ग्रहण करें।

राजा इन्द्रसेन के पितरों की मुक्ति

नारदजी की आज्ञा मानकर राजा इन्द्रसेन ने संपूर्ण विधि से इंदिरा एकादशी व्रत किया। व्रत पूर्ण होने पर आकाश से पुष्पवृष्टि हुई और उनके पिताश्री गरुड़ पर आरूढ़ होकर श्रीविष्णु धाम को प्रस्थान कर गए। बाद में राजा इन्द्रसेन ने भी पुत्र को राज्य देकर स्वयं विष्णुधाम को प्राप्त किया।

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इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व

1. इस व्रत को करने से साधक के पाप नष्ट होते हैं।

2. पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे स्वर्गलोक जाते हैं।

3. व्रतधारी को भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है।

4. कथा सुनने और पढ़ने मात्र से भी पुण्य लाभ प्राप्त होता है।

इंदिरा एकादशी व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पितरों के उद्धार और आत्मा की शुद्धि का माध्यम है। भगवान विष्णु और माता पार्वती की पूजा, श्राद्ध तर्पण और उपवास से यह व्रत साधक को वैकुण्ठ धाम तक ले जाने वाला माना गया है।

इस कथा का पाठ करने से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और पितृपक्ष में यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

Indira Ekadashi Vrat Katha In Gujarati

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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