Author name: Kajal Makwana

नमस्कार दर्शकों मित्रो मेरा नाम Kajal Makwana है, में एक ब्लॉगर और यूट्यूबर हूं, तथा में आध्यात्मिकता (Spirituality) की श्रेणी में कंटेंट लिखती हूं और यूट्यूब पर विडियोज भी बनाती हूं। मुझे सनातन धर्म के बारे में जानना, आध्यात्मिकता को गहराई से समझना और हमारे हिन्दू धर्म के शास्त्रों जैसे रामायण, महाभारत, श्रीमद भगवद गीता, पुराण, तथा वेदों को पढ़ना बहुत पसंद है। मेरा लक्ष्य है कि मेरे लेखों और वीडियो के माध्यम से आपको (दर्शकों) सच्ची आध्यात्मिकता का अनुभव करा सकू, और हम सब के मन में ईश्वर के प्रति प्रेम जागृत हो ऐसा कुछ कर सकू, तथा आध्यात्मिकता बढ़ने से समाज में शायद बुरे कर्म करने वाले कुछ समझे सके! और आने वाली पीढ़ी भी सनातन धर्म को गहराई से समझ सके। Follow me on: YouTube

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 11

क्या ममता और आसक्ति ही हमारे दुखों का मुख्य कारण हैं? गीता से जीवन का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 11 श्रीभगवानुवाच |अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: || 11 || अर्थात प्रभु ने कहा, […]

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भगवान कृष्ण अर्जुन की उदासी पर क्यों मुस्कुराए?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 10 तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत |सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: || 10 || अर्थात संजय कहते हैं,

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अर्जुन का यह निर्णय क्यों ? – ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा’

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 9 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप |न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 8

क्या सफलता और दौलत से दुख मिटता है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 8 न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् |अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् || 8 || अर्थात अर्जुन कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 7

क्या भगवान से मार्गदर्शन मांगना ही सच्चा समर्पण है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 7 कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव:पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: |यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मेशिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् || 7 ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 6

क्या अर्जुन का युद्ध से इनकार सही था?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 6 न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयोयद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |यानेव हत्वा न जिजीविषामस्तेऽवस्थिता: प्रमुखे

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 5

क्यों अर्जुन ने भिक्षा को गुरुओं की हत्या से श्रेष्ठ माना?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 5 गुरूनहत्वा हि महानुभावान्श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैवभुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् || 5 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 4

क्या अर्जुन की तरह हम भी अपनों के खिलाफ फैसले लेने से डरते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 4 अर्जुन उवाच |कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4 ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 3

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नपुंसकता क्यों कहा?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 3 क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप || 3 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 2

क्या कायरता धर्म स्वर्ग और यश से वंचित कर सकती है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 2 श्रीभगवानुवाच |कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन || 2 || अर्थात श्री भगवान बोले –

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 1

अर्जुन की करुणा देख श्रीकृष्ण ने क्या कहा?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 1 सञ्जय उवाच |तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: || 1 || अर्थात संजय बोले

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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 47

क्या मोह ने अर्जुन को वीर से वैरागी बना दिया?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 47 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: || 47 || अर्थात

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