Author name: Kajal Makwana

नमस्कार दर्शकों मित्रो मेरा नाम Kajal Makwana है, में एक ब्लॉगर और यूट्यूबर हूं, तथा में आध्यात्मिकता (Spirituality) की श्रेणी में कंटेंट लिखती हूं और यूट्यूब पर विडियोज भी बनाती हूं। मुझे सनातन धर्म के बारे में जानना, आध्यात्मिकता को गहराई से समझना और हमारे हिन्दू धर्म के शास्त्रों जैसे रामायण, महाभारत, श्रीमद भगवद गीता, पुराण, तथा वेदों को पढ़ना बहुत पसंद है। मेरा लक्ष्य है कि मेरे लेखों और वीडियो के माध्यम से आपको (दर्शकों) सच्ची आध्यात्मिकता का अनुभव करा सकू, और हम सब के मन में ईश्वर के प्रति प्रेम जागृत हो ऐसा कुछ कर सकू, तथा आध्यात्मिकता बढ़ने से समाज में शायद बुरे कर्म करने वाले कुछ समझे सके! और आने वाली पीढ़ी भी सनातन धर्म को गहराई से समझ सके। Follow me on: YouTube

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 39

क्या कामनाएं ही ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 39 आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥ ३९ ॥ अर्थात भगवान […]

क्या कामनाएं ही ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 38

क्या बढ़ती इच्छाएँ हमारे विवेक और आत्मिक विकास को रोक रही हैं?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 38 धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥ ३८ ॥ अर्थात भगवान कहते हैं जैसे

क्या बढ़ती इच्छाएँ हमारे विवेक और आत्मिक विकास को रोक रही हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 37

क्या इच्छाएं ही हमारे सभी दुखों और पापों की जड हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 37 श्रीभगवानुवाचकाम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥ ३७ ॥ श्री भगवान

क्या इच्छाएं ही हमारे सभी दुखों और पापों की जड हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 36

क्या कोई अदृश्य शक्ति हमें पाप करने को मजबूर करती है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 36 अर्जुन उवाचअथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वाष्र्णेय बलादिव नियोजितः ॥ ३६

क्या कोई अदृश्य शक्ति हमें पाप करने को मजबूर करती है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 35

क्या दूसरों की राह अपनाना हमारी असफलता का कारण बन रहा है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 35 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥ ३५ ॥ अर्थात भगवान

क्या दूसरों की राह अपनाना हमारी असफलता का कारण बन रहा है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 34

क्या राग और द्वेष हमारे आध्यात्मिक विकास के सबसे बड़े शत्रु हैं?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 34 इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ । तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥ ३४ ॥ अर्थात भगवान कहते

क्या राग और द्वेष हमारे आध्यात्मिक विकास के सबसे बड़े शत्रु हैं? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 33

क्या हमारा स्वभाव ही हमारे कर्मों का निर्धारक है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 33 सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥ ३३ ॥

क्या हमारा स्वभाव ही हमारे कर्मों का निर्धारक है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 32

क्या भगवान की आज्ञा का उल्लंघन ही मनुष्य के पतन का कारण है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 32 ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥ ३२॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

क्या भगवान की आज्ञा का उल्लंघन ही मनुष्य के पतन का कारण है? Read Post »

क्या आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता पर विश्वास ही मुक्ति का उपाय है? Gita Chapter 3

क्या आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता पर विश्वास ही मुक्ति का उपाय है?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 31 ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥ ३१॥ अर्थात भगवान

क्या आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता पर विश्वास ही मुक्ति का उपाय है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 30

क्या निष्काम कर्म ही सच्चा अध्यात्म है?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 30 मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥ ३०॥ अर्थात भगवान कहते

क्या निष्काम कर्म ही सच्चा अध्यात्म है? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 29

क्या ज्ञानी व्यक्ति को अज्ञानी लोगों को सत्कर्मों से विचलित करना चाहिए?

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 29 प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु |तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् || 29 || अर्थात भगवान कहते हैं, प्रकृति

क्या ज्ञानी व्यक्ति को अज्ञानी लोगों को सत्कर्मों से विचलित करना चाहिए? Read Post »

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 28

क्या हम कर्ता हैं या प्रकृति का माध्यम?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 28 तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: |गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते || 28 || अर्थात

क्या हम कर्ता हैं या प्रकृति का माध्यम? Read Post »

Scroll to Top