Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 24
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |
नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: || 24 ||
अर्थात भगवान कहते हैं, यह शरीरी को छेदा नहीं जा सकता, इसे जला नहीं जा सकता, और इसे गीला भी नहीं किया जा सकता। तथा इसे सुखा भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह नित्य रहने वाला, सब में परिपूर्ण, अचल और स्थिर स्वभाव वाला तथा अनादी है।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 24 Meaning in hindi
अच्छेद्योऽयम:
इस शरीर को हथियार भेद नहीं सकते। इसका मतलब यह नहीं है कि हथियारों की कमी है या जो लोग हथियार चलाते हैं वे अयोग्य हैं, इसके विपरीत काटने की क्रिया शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती, यह काटने योग्य नहीं है।
शस्त्रों के अतिरिक्त इस शरीर को मन्त्र, शाप आदि से भी नहीं काटा जा सकता। जैसे याज्ञवल्क्य के प्रश्न का उत्तर न दे पाने के कारण उनके शाप से शाकल्य का सिर कट गया था (बृहदारण्यक)। इस प्रकार शरीर को तो मन्त्रों और वाणी से काटा जा सकता है, परन्तु आत्मा पूर्णतया अविनाशी है।
अदाह्योऽयम:
यह शरीरी अदहनीय है, क्योंकि उसमें लड़ने की क्षमता नहीं है। अग्नि के अतिरिक्त इस शरीर को मन्त्र, शाप आदि से भी नहीं जलाया जा सकता। जैसे दमयन्ती के शाप के कारण व्याध बिना अग्नि के ही जलकर भस्म हो गया था। इस प्रकार अग्नि, शाप आदि से केवल वही जलाया जा सकता है जो जलाने योग्य है। दहन की प्रक्रिया इस शरीरी में प्रवेश भी नहीं कर सकती।
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अक्लेद्य:
यह शरीर भिगोने के लिए उपयुक्त नहीं है, अर्थात इसमें गिला होने की पात्रता ही नहीं। इसको जल से गीला नहीं किया जा सकता, न ही मन्त्र, शाप, औषधि आदि से। जैसे सुना है कि ‘मालकोश’ राग गाने से पत्थर भी पिघल जाते हैं और चन्द्रमा को देखकर चन्द्रमणि मिल जाने से मनुष्य भीग जाता है, परन्तु यह शरीरी ऐसी वस्तु नहीं है जिसे राग, रागिनी आदि से भिगोया जा सके।
अशोष्य:
यह शरीरी अशोष्य है। यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे हवा द्वारा अवशोषित किया जा सके, क्योंकि इसमें शोषण का प्रवेश नहीं है। इस शरीर को वायु, मन्त्र, शाप, औषधि आदि से सुखाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार अगस्त्य ऋषि ने समुद्र का दोहन किया था, उसी प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने बल से इस शरीरी का दोहन नहीं कर सकता।
एव च:
नित्य:
अर्जुन विनाश की आशंका से शोक मना रहे थे। इसीलिए भगवान् शरीरी को अदाह्य, अच्छेय, अक्लेद्य, तथा अशोष्य कहकर “एव च” शब्द पर विशेष जोर देते हुए कहते हैं कि यह शरीरी ऐसा ही है। इसमें कोई क्रिया नहीं आती। इसलिए यह शरीरी शोक करने योग्य नहीं है।
यह शरीर शाश्वत है। ऐसा नहीं है कि यह किसी समय नहीं था और किसी समय नहीं रहेगा, अपितु यह शाश्वत है और सभी काल में ऐसा ही रहेगा।
सर्वगत:
यह शरीर तो सदैव एक जैसा ही रहता है, तो फिर यह कहाँ रहता है? इसके उत्तर में कहा गया है कि यह शरीरी सभी व्यक्तियों, वस्तुओं, शरीरों आदि में समान रूप से निवास करता है।
अचल:
यदि यह सर्वव्यापी है, तो यह कही आता जाता भी होगा, है ना? इस विषय पर कहते है कि यह देही स्थिर स्वभाव वाला है, अर्थात इसमें कभी इधर तो कभी उधर आना-जाना जैसी क्रिया नहीं होती।
स्थाणु:
यह स्थिर स्वभाव का है, कहीं जाता नहीं – यह सत्य है, लेकिन क्या उसमें कोई स्पंदन है? जैसे वृक्ष एक स्थान पर रहता है, कहीं हिलता-डुलता नहीं, परंतु एक स्थान पर रहने पर भी वह गतिशील रहता है, उसी प्रकार क्या इस शरीरी में भी गति है? जवाब में कहा गया है कि यह शरीरी स्थिर है, अर्थात इसमें कोई गति नहीं है।
सनातन:
यह शरीरी अचल है, स्थायी है – यह बात तो ठीक है, परंतु यह कभी पैदा भी होता होगा? इस विषय में कहा गया है कि यह सनातन है, अनादी है, और सदा से हैं यह किसी समय न था, ऐसा संभव ही नहीं है।
FAQs
क्या आत्मा को शस्त्रों से नष्ट किया जा सकता है?
नहीं, आत्मा को कोई भी शस्त्र या हथियार नष्ट नहीं कर सकता, क्योंकि यह अच्छेद्य (अभेदी) है। यह हमें सिखाता है कि आत्मा शाश्वत है और बाहरी हिंसा से अप्रभावित रहती है।
क्या आत्मा पर मंत्र शस्त्र या शाप का असर होता है?
आत्मा पर मंत्र, शाप या अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होता। यह अदाह्य (अदहनशील) है, जो बताता है कि आत्मिक शक्ति बाहरी ऊर्जा से परे होती है।
क्या आत्मा जन्म लेती है या मरती है?
आत्मा सनातन और नित्य है। इसका कोई आरंभ या अंत नहीं है। यह विचार आज के जीवन में आत्मविश्वास और भयमुक्त दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।
आत्मा का सबमें होना क्या दर्शाता है?
आत्मा सर्वगत (सर्वव्यापक) है, यानी हर व्यक्ति और वस्तु में आत्मा की उपस्थिति है। यह आज की दुनिया में समता, करुणा और एकता की भावना को बढ़ावा देता है।