बचपन में ही बच्चों में बोए गीता ज्ञान के बीज, जीवन भर मिलती रहेगी छांव

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Gita Updesh: क्यों जरूरी है बच्चों को गीता ज्ञान देना?

Srimad Bhagavad Gita केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को समझने और उसमें संतुलन बनाए रखने का एक दार्शनिक और व्यवहारिक मार्गदर्शन है। यदि बच्चों को Geeta ka gyan बचपन से ही दिया जाए, तो वे न केवल अच्छे संस्कारों के साथ बड़े होते हैं, बल्कि उनके भीतर आत्म-नियंत्रण, धैर्य और सहनशीलता जैसे गुण भी विकसित होते हैं। गीता उन्हें यह सिखाती है कि जीवन में केवल बाहरी सफलता ही नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आत्मसंतोष भी महत्वपूर्ण हैं।

जब कोई बच्चा गीता के श्लोकों को समझने लगता है, तो वह धीरे-धीरे अपने व्यवहार में स्थिरता, विवेक और विवेचना को अपनाता है। वह यह जानने लगता है कि हर कार्य में निस्वार्थ भाव से कर्म करना ही सच्चा धर्म है। गीता उसे कर्म करते समय फल की चिंता न करने की शिक्षा देती है, जिससे उसमें आत्मविश्वास पैदा होता है और वह असफलताओं से डरता नहीं। सुख-दुख, लाभ-हानि और सफलता-विफलता में समभाव रखने की सीख उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाती है।

इसके अलावा, Gita यह भी सिखाती है कि हमारा सबसे बड़ा मित्र और शत्रु हमारा खुद का मन है। जो बच्चा बचपन से ही अपने मन को पहचानना और नियंत्रित करना सीख जाता है, वह आगे चलकर जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियों को भी समझदारी से पार कर लेता है। गीता का ज्ञान आत्मा की शुद्धता, संयम और सकारात्मक सोच की दिशा में बच्चों का मार्गदर्शन करता है। आज के समय में जब नैतिकता, संयम और ध्यान की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है, ऐसे में गीता के उपदेश एक मजबूत आधार दे सकते हैं।

इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि माता-पिता और शिक्षक मिलकर बच्चों को Srimad Bhagavad Geeta का मूल संदेश दें और उनके भीतर भारतीय संस्कृति और मूल्यों के प्रति प्रेम जगाएं। जब बच्चा बचपन से ही Gita की छाया में पलेगा, तब वह न केवल एक सफल नागरिक बनेगा, बल्कि एक संतुलित, संवेदनशील और जिम्मेदार इंसान भी बनेगा।

बचपन में गीता का ज्ञान देने से:

  • बच्चों का चरित्र निर्माण होता है।
  • वे मन को नियंत्रित करना सीखते हैं।
  • जीवन के सुख-दुख में संतुलन बनाए रखना सीखते हैं।
  • उनमें कर्तव्यबोध और नैतिकता की भावना जागती है।
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3 मुख्य गीता श्लोक जो बच्चों को जरूर सिखाएं

1. कर्म पर ध्यान

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

भावार्थ:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं। इसलिए कर्म करते जाओ, लेकिन फल की चिंता मत करो।

बच्चों के लिए सीख:
नतीजे की चिंता किए बिना मेहनत करना जरूरी है। इससे वे आत्मविश्वासी बनते हैं।

2. समभाव

सुख-दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥

भावार्थ:
सुख-दुख, हानि-लाभ, जीत-हार में समभाव बनाए रखो और अपने कर्तव्य का पालन करो।

बच्चों के लिए सीख:
हर परिस्थिति में शांत और स्थिर रहना चाहिए। यह मानसिक मजबूती लाता है।

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3. मन पर नियंत्रण

उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

भावार्थ:
अपने मन से खुद को ऊपर उठाओ, नीचे मत गिराओ। मन ही सबसे बड़ा मित्र है और वही सबसे बड़ा शत्रु भी।

बच्चों के लिए सीख:
स्वयं पर नियंत्रण रखना सीखना जरूरी है। आत्म-नियंत्रण ही सफलता की कुंजी है।

Srimad Bhagavad Geeta का ज्ञान बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के समय में जब बच्चों का ध्यान भटकाने वाले कई साधन हैं, ऐसे में गीता के श्लोक उन्हें संस्कार, संयम और स्थिरता देना सिखाते हैं। यह केवल धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।

इसलिए बचपन से ही बच्चों में गीता ज्ञान के बीज बोना जरूरी है, ताकि वे जीवनभर उसकी छांव में सुरक्षित, संतुलित और सशक्त जीवन जी सकें।

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