क्या अर्जुन की तरह हम भी अपनों के खिलाफ फैसले लेने से डरते हैं?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 4

अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4 ||

अर्थातअर्जुन बोले – हे मधुसूदन! मैं युद्धस्थल में बाणों द्वारा भीष्म और द्रोण से कैसे लड़ सकता हूँ? क्योंकि, हे अरिसूदन! वे दोनों ही पूजनीय हैं।

क्या अर्जुन की तरह हम भी अपनों के खिलाफ फैसले लेने से डरते हैं?

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 4 Meaning in hindi

मधुसूदन अरिसूदन इन दो संबोधनों को देने का तात्पर्य यह है कि आप राक्षसों और शत्रुओं का संहार करने वाले हैं, अर्थात जो लोग दुष्ट स्वभाव वाले हैं, अधार्मिक आचरण में संलग्न हैं और संसार को कष्ट पहुंचाते हैं। मधु कैटभ जैसे दानव हैं उन्हें भी अपने मार डाला है, और जो बिना कारण घृणा रखते हैं, अनिष्ट करते हैं। ऐसे शत्रुओं को आपने मारा है, परन्तु मेरे सामने मेरे पितामह भीष्म और गुरु द्रोण खड़े हैं, जो सब प्रकार से आचरण में श्रेष्ठ हैं, जो मुझसे अत्यन्त प्रेम करते हैं और प्रेमपूर्वक मुझे शिक्षा देते हैं। मैं अपने दादा और शिक्षक को कैसे मार सकता हूं जो मेरे इतने शुभचिंतक हैं?

कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च :

मैं कायरता के कारण युद्ध से विमुख नहीं हो रहा हूँ, इसके बजाय, मैं धर्म के कारण युद्ध से दूर हो रहा हूं। लेकिन आप कह रहे हैं कि यह कायरता है। आपमें यह नपुंसकता कहां से आई? जरा आप सोचिए, मैं अपने पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के साथ बाणों से कैसे युद्ध करूंगा? महाराज! यह मेरी कायरता नहीं है। कायरता उसे कहा जा सकता है जब मैं मरने से डरता हूं, लेकिन मैं मरने से नहीं डरता, इसके विपरीत, मैं मारने से डरता हूं।

संसार में मुख्यतः दो ही प्रकार के रिश्ते होते हैं – जन्म का रिश्ता और शिक्षा का रिश्ता। जन्म के सम्बन्ध की दृष्टि से हमारे परदादा भीष्म पूजनीय हैं। मैं बचपन से ही उनकी गोद में पला-बढ़ा हूं। जब मैं बच्चा था, तब में उन्हें ‘पिताजी, पिताजी’ कहता, तब वे मुझे कहते थे ‘मैं तुम्हारे पिता का भी पिता हूं।’ इस तरह, उन्होंने हमेशा मुझ पर बहुत प्यार और स्नेह दिखाया है। सिद्धांत के संबंध में आचार्य द्रोण हमारे आदरणीय हैं। वह मेरे शिक्षक है। उनका मुझसे इतना स्नेह है कि उन्होंने अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी मेरी तरह शिक्षा नहीं दी। उन्होंने हम दोनों को ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना सिखाया, लेकिन ब्रह्मास्त्र को निष्क्रिय करना उन्होंने मुझे सिखाया, अपने बेटे को नहीं। उन्होंने मुझे यह वरदान भी दिया है कि ‘मेरे शिष्यों में शस्त्र विद्या में तुमसे श्रेष्ठ कोई नहीं होगा।’ ऐसे पूज्य पिता और गुरु द्रोण के सामने ‘रे’ या ‘तू’ बोलना भी उनकी हत्या के बराबर पाप है। फिर, उन्हें मार डालने की नीयत से उन पर बाणों से युद्ध करना कितना बडा पाप है!

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इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन :

सम्बन्ध में बड़े होने के कारण पितामह भीष्म और गुरु द्रोण दोनो आदरणीय और पूजनीय  है। उनका मुझ पर पूरा अधिकार है। वे तो मुझ पर वार कर सकते हैं, परन्तु मैं उन पर बाण कैसे चला सकता हूँ? उनके विरुद्ध युद्ध करना मेरे लिये बहुत बड़ा पाप है! क्योंकि वे दोनों ही मेरी सेवा के योग्य हैं और सेवा से भी बढ़कर पूजा के योग्य हैं। मैं ऐसे पूज्यजनों को बाण से कैसे मार सकता हूँ?

इस श्लोक में अर्जुन ने उत्तेजित होकर भगवान को अपना निर्णय कह दिया। अब भगवान की वाणी की असर होने से अर्जुन खुद के और भगवान के निर्णय को संतुलित करके आगे कहते हैं।

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 4 Meaning in hindi (Video)

FAQs

अर्जुन ने युद्ध से क्यों पीछे हटने की बात कही?

अर्जुन ने भीष्म और द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों के विरुद्ध युद्ध को धर्म के विरुद्ध माना और उन्हें मारना पाप समझा।

अर्जुन ने भीष्म और द्रोण के प्रति अपनी भावनाएँ कैसे व्यक्त कीं?

अर्जुन ने बताया कि भीष्म उनके पितामह हैं जिन्होंने उन्हें स्नेह से पाला और द्रोण उनके गुरु हैं जिन्होंने उन्हें शस्त्र विद्या में श्रेष्ठ बनाया। इसलिए वे दोनों पूजनीय हैं।

अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण को किन नामों से संबोधित किया?

अर्जुन ने उन्हें “मधुसूदन” और “अरिसूदन” कहकर पुकारा, जो राक्षसों और शत्रुओं के संहारक हैं।

क्या अर्जुन की तरह हम भी अपनों के खिलाफ फैसले लेने से डरते हैं?

हाँ, जैसे अर्जुन अपने पूज्यजनों के खिलाफ युद्ध नहीं करना चाहते थे, वैसे ही हम भी अपनों के खिलाफ निर्णय लेते समय भावनाओं में उलझ जाते हैं। रिश्तों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बना पाना अक्सर कठिन होता है।

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