श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नपुंसकता क्यों कहा?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 3

क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप || 3 ||

अर्थात भगवान कहते है, हे पृथानन्दन प्रिय अर्जुन! इस नपुंसकता को प्राप्त मत हो, क्योंकि यह आपके लिए सही नहीं है. हे परंतप! हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता को त्याग दो और युद्ध के लिए खडे हो जाओ।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नपुंसकता क्यों कहा?

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 3 Meaning in hindi

पार्थ :

भगवान अर्जुन के हृदय में क्षत्रिय के अनुरूप वीरता की भावना जागृत करने के लिए उसे पार्थ नाम से संबोधित करते हैं, तथा उसे माता पृथा (कुंती) का संदेश याद दिलाते हैं। तात्पर्य यह है कि अपने अंदर कायरता उत्पन्न करके अपनी माता की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।

क्लैब्यं मा स्म गम: (श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नपुंसकता क्यों कहा?) :

अर्जुन कायरता के करण युद्ध करने में अधर्म और युद्ध नहीं करने में धर्म मान रहे थे। इसीलिए अर्जुन को चेतावनी देने के लिए भगवान ने कहा कि, युद्ध नहीं करना यह धर्म की बात नहीं! यह तो नपुंसकता है, इस कारण से आप यह नपुंसकता छोड़ दो।

नैतत्त्वय्युपपद्यते :

आपमे यह नपुंसकता नहीं आना चाहिए थी। क्योंकि आप कुंती जैसे वीर क्षत्रियाणि माता के पुत्र हो और खुद भी शूरवीर हो। तात्पर्य है की जन्म से और अपनी प्रकृति से भी आप में नपुंसकता आना सब प्रकार से आयोग्य है

परन्तप :

आप स्वयं परंतप हैं, अर्थात् शत्रुओं को क्रोधित और हताश करने वाले हैं, अतः क्या आप इस समय युद्ध से विमुख होकर अपने शत्रुओं को प्रसन्न करेंगे?

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क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ :

यहाँ ‘क्षुद्रम’ शब्द के दो अर्थ हैं – (1) हृदय की दुर्बलता जो तुच्छता की ओर ले जाती है, अर्थात् मोक्ष, स्वर्ग या यश की ओर नहीं ले जाती। यदि तुम इस तुच्छता को नहीं त्यागोगे तो तुम स्वयं तुच्छ हो जाओगे! और (2) दिल की यह कमज़ोरी एक मामूली चीज है। आप जैसे बहादुर व्यक्ति के लिए ऐसी तुच्छ चीज को त्यागना कोई कठिन काम नहीं है।

यदि तुम मानते हो कि मैं एक धर्मी व्यक्ति हूँ और युद्ध का पाप नहीं करना चाहता, तो यह तुम्हारे हृदय की दुर्बलता है, कमजोरी है। इसे त्यागकर तुम युद्ध की तैयारी करो, अर्थात् जो कर्तव्य तुम्हें मिला है, उसे पूरा करो।

यहाँ अर्जुन के सामने युद्ध रुपी कर्तव्य कर्म है। इस कारण परमेश्वर कहते है, ‘उठो, खड़े हो जाओ और अपना युद्ध कर्तव्य निभाओ।’ अर्जुन के कर्तव्य के विषय में भगवान के मन में किंचितमात्र भी संदेह नहीं है। वे जानते हैं कि हर प्रकार से अर्जुन के लिए लड़ना उनका कर्तव्य है। इसलिए अर्जुन के प्रारंभिक तर्कों को नजरअंदाज करते हुए, वे तुरंत उसे अपना कर्तव्य निभाने और पूरी तैयारी के साथ युद्ध के लिए खड़े होने का आदेश देते हैं।

प्रथम अध्याय में अर्जुन ने युद्ध न करने के कई तर्क दिये थे। उन तर्कों का कोई सम्मान किए बिना, भगवान ने अचानक अर्जुन को उसकी कायरता के लिए फटकार लगाई! और उसे युद्ध के लिए खडे होने का आदेश दिया। इसलिए, अपने तर्कों का समाधान न खोज पाने के कारण, अर्जुन अचानक उत्तेजित हो गए और अगले श्लोकों के वचन बोल उठे।

Bhagavad Gita Adhyay 2 Shloka 3 Meaning (Video)

FAQs

भगवान ने अर्जुन को “पार्थ” कहकर क्यों पुकारा?

“पार्थ” शब्द अर्जुन की माता पृथा (कुंती) की ओर संकेत करता है, जिससे उसे उसकी वीरता और कर्तव्य की याद दिलाई जाती है।

परंतप शब्द का क्या महत्व है?

“परंतप” का अर्थ है शत्रुओं को पराजित करने वाला। भगवान अर्जुन को उसकी वीरता की याद दिलाकर प्रेरित करते हैं।

“हृदय की दुर्बलता” का आज क्या मतलब है?

यह डर, आत्म-संदेह, हीन भावना या नकारात्मक सोच जैसी मानसिक कमजोरियों की ओर इशारा करता है। भगवान कहते हैं कि इन्हें त्याग कर आत्मबल बढ़ाओ।

इस श्लोक से स्टूडेंट्स या वर्किंग प्रोफेशनल्स क्या सीख सकते हैं?

मेहनत से भागना नहीं है। फेल होने का डर या रिजेक्शन की चिंता छोड़कर, पूरे आत्मविश्वास से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ो।

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