क्या जो दिखता है वही सच है? गीता से जानिए असत्य और सत्य की पहचान

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 16

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: |
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभि: || 16 ||

अर्थात भगवान कहते हैं, असत का भाव सदा विद्यमान नहीं और सत का अभाव विद्यमान नहीं, तत्वदर्शी महापुरुषों ने यह दोनों का अंत ही अर्थात तत्व देखा है।

Shrimad Bhagavad Geeta Chapter 2 Shloka 16 Meaning in hindi

नासतो विद्यते भाव: 

शरीर पहले भी नहीं था, मृत्यु के बाद भी नहीं रहेगा, और वर्तमान में भी यह क्षण-क्षण लुप्त हो रहा है। तात्पर्य यह है कि यह शरीर भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों में कभी भी भावरूप में नहीं रहता, अतः यह बात मिथ्या है। इसी प्रकार इस संसार का कोई मूल्य नहीं है, यह भी मिथ्या है। यह शरीर संसार का एक छोटा सा नमूना मात्र है, इस कारण शरीर के परिवर्तन के साथ ही संसार में भी परिवर्तन का अनुभव होता है कि, यह संसार पहले भी अभावग्रस्त था, भविष्य में भी अभावग्रस्त रहेगा तथा वर्तमान में भी अभावग्रस्त है।

संसार अंधकार की आग में लकड़ी की तरह निरंतर जल रहा है। लकड़ी जलने के बाद केवल कोयला और राख बचती है, लेकिन समय की आग इस विचित्र तरीके से संसार को जलाती है कि न कोयला बचता है, न राख। उस संसार का अभाव ही अभाव कर देते है। । इसलिए कहा गया है कि असत के पास कोई शक्ति नहीं है।

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नाभावो विद्यते सत:

सत चीजों का अभाव नहीं है, अर्थात जब शरीर का जन्म नहीं हुआ था तब भी शरीरी(आत्मा) था, शरीर नष्ट हो जाने पर भी शरीरी रहेगा, तथा वर्तमान में शरीर में परिवर्तन होने पर भी शरीरी ज्यों का त्यों बना रहता है। इसी प्रकार, जब संसार नहीं था, तब भी ईश्वरीय तत्व विद्यमान था, यदि संसार समाप्त हो जाए, तब भी ईश्वरीय तत्व विद्यमान रहेगा, तथा वर्तमान में संसार परिवर्तित हो रहा है, तब भी ईश्वरीय तत्व वैसा ही बना रहता है, जैसा वह उसमें है।

उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभि: क्या जो दिखता है वही सच है? गीता से जानिए असत्य और सत्य की पहचान :

जो महापुरुष सत्य और असत्य तथा शरीर और आत्मा दोनों का सार जानते हैं, उन्होंने इस सार को देखा है, उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि केवल एक ही सार है।

अवास्तविक वस्तु का सार भी वास्तविकता है, और सत् वस्तु का सार भी वास्तविकता है, अर्थात दोनों का सार एक ही ‘वास्तविकता’ है, दोनों का सार भावना के रूप में एक ही है। इस प्रकार एक ही अखण्ड तत्त्व है जिसे सत्य और असत्य दोनों का तत्त्व जानने वाले महापुरुष ही जान सकते हैं। जो शक्ति असत्य की प्रतीत होती है, वह वास्तव में सत्य की ही शक्ति है। केवल सत्य की शक्ति से ही असत्य को शक्तिशाली बनाया जा सकता है।

अर्जुन भी शरीरों के लिए विलाप कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वे सभी युद्ध में मर जायेंगे। तो भगवान कहते हैं, यदि वे युद्ध नहीं करेंगे तो क्या वे मर नहीं जायेंगे? असत्य तो मरेगा ही और लगातार मर रहा है, लेकिन जो सत्य इसमें है, उसकी कभी कमी नहीं होगी। इसलिए शोक करना आपकी अपनी मूर्खता है।

सत और असत क्या है? इसका उत्तर हम अगले श्लोक में देखेंगे।

FAQs

गीता के अनुसार असत का क्या अर्थ है?

असत वह है जो केवल दिखता है लेकिन वास्तविक रूप से कभी अस्तित्व में नहीं होता, जैसे शरीर और संसार।

क्या शरीर असली है या भ्रम?

गीता के अनुसार शरीर क्षणभंगुर है और असली नहीं, यह सिर्फ एक परिवर्तनशील माध्यम है।

क्या आत्मा कभी नष्ट होती है?

नहीं, आत्मा नित्य, अविनाशी और सदा विद्यमान है।

सत्य और असत्य को समझने के लिए क्या ज़रूरी है?

तत्वदर्शी महापुरुषों की दृष्टि से देखना ज़रूरी है, जो सत्य और असत्य दोनों का सार समझते हैं।

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