
Narak Chaurdashi 2025: श्रीकृष्ण के विजय दिवस से लेकर वामन अवतार तक – जानें तीन दिव्य कथाएँ और धार्मिक महत्व
दीपावली का हर दिन कुछ खास महत्व रखता है, और उसी श्रृंखला में आता है — नरक चतुर्दशी, जिसे नानी दिवाली, रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है और यम पूजन, श्रीकृष्ण पूजन तथा काली पूजा से इसका विशेष संबंध है। दक्षिण भारत में इस दिन वामन पूजा का विशेष महत्व होता है। इस पावन अवसर पर आइए जानें नरक चतुर्दशी से जुड़ी तीन पौराणिक कथाएँ, जिन्होंने इस तिथि को दिव्यता और प्रकाश का प्रतीक बना दिया।
पहली कथा — भौमासुर का अंत: श्रीकृष्ण का दिव्य विजय दिवस
एक समय की बात है — प्रागज्योतिषपुर नामक नगर का दैत्यराज भौमासुर (जिसे नरकासुर भी कहा जाता है) तीनों लोकों में आतंक फैलाने लगा था। उसने देवताओं का धन और आभूषण लूट लिए — जैसे अदिति के कुंडल, वरुण का छत्र और देवमणि। इतना ही नहीं, उसने पृथ्वी के अनेक राजकुमारों की सुंदर कन्याओं का अपहरण करके उन्हें अपने महल में बंदी बना लिया। देवराज इंद्र ने जब यह दुखद घटना श्रीकृष्ण को सुनाई, तो उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर भौमासुर के नगर की ओर प्रस्थान किया। वहां श्रीकृष्ण ने पहले मुर दैत्य और उसके छह पुत्रों — ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभस्वान और अरुण — का संहार किया।
इसके बाद भौमासुर स्वयं युद्ध के मैदान में उतरा। चूंकि उसे एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप था, श्रीकृष्ण ने सत्या को रथ की सारथी बनाया। घोर युद्ध के बाद सत्यभामा के हाथों भौमासुर का वध हुआ, और श्रीकृष्ण ने 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया, उनका सम्मान और स्वतंत्रता लौटाई। यह वही दिन था — कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी — और तभी से यह तिथि “नरक चतुर्दशी” के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस दिन दीप प्रज्वलित किए जाते हैं, जो अंधकार से प्रकाश की विजय और नर्क से मुक्ति का प्रतीक हैं।
दूसरी कथा — वामन भगवान और राजा बली की अमर कथा
दक्षिण भारत में नरक चतुर्दशी को वामन पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस कथा का संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार और महान दानवीर राजा बली (महाबली) से है। जब भगवान वामन, एक छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बली के यज्ञ में पहुंचे, तो उन्होंने केवल तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बली ने बिना हिचक दान दे दिया। तब वामन भगवान ने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश नाप लिया, और तीसरे पग के लिए स्थान न बचा — तब राजा बली ने स्वयं का सिर अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और वरदान दिया –
“राजन, तू वर्ष में एक बार अपने लोक में लौटकर अपने प्रजाजनों से मिल सकेगा।”
राजा बली ने प्रार्थना की –
“हे प्रभु, जो लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करेंगे, उन्हें यमलोक का भय न रहे, और जो तीनों दिन दिवाली का पर्व मनाएंगे, उनके घर से लक्ष्मी कभी न जाए।”
भगवान वामन ने कहा — “तथास्तु।”
तभी से नरक चतुर्दशी के दिन यम पूजा और दीपदान की परंपरा आरंभ हुई, जो मृत्यु के भय को मिटाकर दीर्घायु और सौभाग्य प्रदान करती है।
तीसरी कथा — धर्मनिष्ठ राजा रंतिदेव की कहानी
एक समय एक अत्यंत धर्मात्मा राजा हुए — राजा रंतिदेव। उन्होंने सदैव सत्य, दया और धर्म का पालन किया। परंतु मृत्यु के समय यमदूत उन्हें नर्क ले जाने आए।
राजा आश्चर्यचकित हुए –
“मैंने तो कभी कोई पाप नहीं किया, फिर मुझे नर्क क्यों?”
यमदूतों ने कहा –
“एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण निराश होकर लौट गया था। उसी का पाप फल आपको भुगतना होगा।”
राजा ने एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों से उपाय पूछा।
ऋषियों ने कहा –
“कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखो, ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपने अपराध के लिए क्षमा मांगो।”
राजा रंतिदेव ने ऐसा ही किया और अंततः उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति हुई। तभी से इस दिन व्रत, दान और प्रायश्चित्त की परंपरा प्रारंभ हुई — जो आत्मा को पापों से मुक्त कर दिव्य लोक की ओर ले जाती है।
नरक चतुर्दशी 2025 से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
| विषय | विवरण | 
| तिथि | 21 अक्टूबर 2025 (मंगलवार) | 
| अन्य नाम | रूप चौदस, छोटी दिवाली, काली चौदस | 
| मुख्य पूजा | यम पूजा, श्रीकृष्ण पूजा, काली पूजा, वामन पूजा | 
| महत्व | अंधकार पर प्रकाश की विजय, मृत्यु भय से मुक्ति, आत्मशुद्धि | 
| परंपरा | दीपदान, स्नान, व्रत, दान, और भगवान की आराधना | 
नरक चतुर्दशी पर क्या करें
- सूर्योदय से पहले स्नान करें (अभ्यंग स्नान)
- यमराज के लिए दक्षिण दिशा में दीप जलाएं
- श्रीकृष्ण और सत्या की पूजा करें
- ब्राह्मणों को भोजन और दान दें
- घर में दीप प्रज्वलित करें — यह न केवल प्रकाश का प्रतीक है, बल्कि भय और नकारात्मकता को भी दूर करता है।
अंधकार से प्रकाश की ओर
नरक चतुर्दशी का सच्चा संदेश यह है –
अंधकार से प्रकाश की ओर, पाप से पुण्य की ओर और अहंकार से भक्ति की ओर बढ़ना।
इस दिन यदि हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर, सत्य, प्रेम और दान के दीप जलाएं, तो जीवन स्वयं एक दिवाली बन जाता है — उज्ज्वल, शांत और आनंदमय
जय श्रीकृष्ण! आप सभी को नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ! 🙏
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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।









 
  
  