Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 17
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् |
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति || 17 ||
अर्थात भगवान कहते हैं, अविनाशी तो तुम उसे जानो जिसे यह संपूर्ण संसार व्याप्त हैं, यह अविनाशी का विनाश कोई भी नहीं कर सकता।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 17 Meaning in hindi
अविनाशि तु तद्विद्धि येन :
पिछले श्लोक में जिन सत्य और असत्य की चर्चा की गई थी, उनमें से प्रथम सत्य की निन्दा करने के लिए यहाँ ‘तु’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
‘उस अविनाशी तत्त्व को समझो’ ऐसा कहकर भगवान ने अप्रत्यक्ष रूप से उस तत्त्व को दिखा दिया है। परोक्ष को दिखाने का तात्पर्य यह है कि इदन्त से जो सम्पूर्ण जगत् प्रकट होता है, उसमें वह परोक्ष तत्त्व ही व्याप्त है, पूर्ण है। वास्तव में, जो पूर्ण है, वह ‘अस्तित्ववान’ है, और जो संसार प्रतीत होता है, वह ‘अस्तित्वहीन’ है।
यहाँ ‘तत्’ शब्द के द्वारा अखण्ड तत्त्व का परोक्ष रूप से उल्लेख करने का तात्पर्य यह नहीं है कि वह तत्त्व बहुत दूर है, अपितु यह है कि वह इन्द्रियों और मन का विषय नहीं है, अतः उसका परोक्ष रूप से उल्लेख किया गया है।
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येन सर्वमिदं ततम् :
जिसे अप्रत्यक्ष कहा गया है वह यह है कि यह सम्पूर्ण जगत् अनन्त तत्व से व्याप्त है। जैसे सोने से बने आभूषणों में सोना ही एकमात्र तत्व है, लोहे से बने शस्त्रों में लोहा ही एकमात्र तत्व है, मिट्टी से बने बर्तनों में मिट्टी ही एकमात्र तत्व है, तथा पानी से बने बर्फ में पानी ही एकमात्र तत्व है, उसी प्रकार संसार में केवल सत तत्व ही एकमात्र तत्व है, अतः वास्तव में वही तत्व इस संसार के लिए जानने योग्य है।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति :
यह भौतिक क्षय अविनाशी को नष्ट नहीं कर सकता। परन्तु शरीर तो नाशवान है, क्योंकि यह निरंतर विनाश की ओर बढ़ रहा है। इसलिए इस विनाशकारी विनाश को कोई नहीं रोक सकता। तुम सोचते हो कि यदि मैं युद्ध नहीं करूंगा तो वे नहीं मरेंगे, परंतु वास्तव में तुम्हारे युद्ध करने या न करने से इस अविनाशी और नाशवान तत्व में कोई अंतर नहीं आएगा, अर्थात अविनाशी तो रहेगा ही और नाशवान नष्ट हो जाएगा।
FAQs
आत्मा अविनाशी क्यों मानी जाती है?
भगवद गीता के अनुसार, आत्मा वह परम तत्व है जो पूरे संसार में व्याप्त है और जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता। यह इन्द्रियों से परे, परन्तु सदा अस्तित्ववान है।
क्या यह श्लोक कर्म और निर्णय लेने में मदद करता है?
हां, यह समझाने में मदद करता है कि हमारे कर्म शरीर तक सीमित हैं, आत्मा पर उनका प्रभाव नहीं पड़ता। इससे व्यक्ति निडर होकर धर्मपूर्ण निर्णय ले सकता है।
क्या विज्ञान इस अविनाशी आत्मा को मानता है?
विज्ञान आत्मा की अवधारणा को प्रत्यक्ष नहीं मानता, परंतु ऊर्जा के नाश न होने का सिद्धांत आत्मा की शाश्वतता की ओर संकेत करता है।
क्या यह श्लोक कर्म और निर्णय लेने में मदद करता है?
हां, यह समझाने में मदद करता है कि हमारे कर्म शरीर तक सीमित हैं, आत्मा पर उनका प्रभाव नहीं पड़ता। इससे व्यक्ति निडर होकर धर्मपूर्ण निर्णय ले सकता है।