Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 19
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते || 19 ||
अर्थात भगवान कहते हैं, जो मनुष्य यह अविनाशी शरीरी को मारने वाला मानता है, और जो मनुष्य इसको मरण पामा हुआ मानता है, वे दोनों ही इसे नहीं जानते क्योंकी यह न तो मारता है, ना ही मारा जाता है.

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 19 Meaning in hindi
य एनं वेत्ति हन्तारं:
जो शरीरी को मारने वाला मानता है, वह ठीक से समझ नहीं पाता, क्योंकि शरीरी में कोई कर्ता नहीं है। जिस प्रकार कोई भी कारीगर, चाहे वह कितना भी चतुर क्यों न हो, बिना औजारों के अपना काम नहीं कर सकता, उसी प्रकार यह शरीरी भी स्वयं शरीर के बिना कुछ नहीं कर सकता। इसलिए तेरहवें अध्याय में भगवान ने कहा है कि सब प्रकार के कर्म प्रकृति के द्वारा ही होते हैं – मनुष्य द्वारा अनुभव किये जाते हैं। वह शरीर की निष्क्रियता का अनुभव करता है (Ch 13/V29)। तात्पर्य यह है कि शरीरी में कोई कर्तापन नहीं है, लेकिन इस शरीर के साथ पहचान और संबंध स्थापित करके, व्यक्ति स्वयं को शरीरी के माध्यम से होने वाले कार्यों का कर्ता मानता है। यदि वह इस शरीर से नहीं जुड़ता तो वह किसी भी कार्य का कर्ता नहीं है।
यश्चैनं मन्यते हतम्:
यहां तक कि जो लोग उसे(शरीरी) मरा हुआ मानते हैं, वे भी वास्तव में इसे नहीं समझते। जैसे यह शरीरी मारने वाला नहीं है, वैसे ही यह मरने वाला भी है। क्योंकि इसमें कभी कोई विकृति नहीं होती। जिसमें विकृति और परिवर्तन होता है, अर्थात केवल वही मर सकता है जो सृजन और विनाश के अधीन है।
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उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते क्या आत्मा सच में मरती है या मारती है? भगवद गीता श्लोक 2.19 का रहस्य :
वे दोनों ही नहीं जानते अर्थात जो यह शरीरी को मारने वाला मानता है वे भी ठीक से नहीं जानते, और जो इसे मरा हुआ मानता है, वह भी ठीक से नहीं जानते।
यहां प्रश्न होता है कि जो यह शरीरी को मारने वाला और मरने वाला दोनों मानते हैं वे क्या ठीक से जानते हैं? इसका उत्तर यह है कि वे भी ठीक से नहीं जानते, क्योंकि यह शरीरी वास्तव में ऐसा नहीं जो नाश करने वाला भी नहीं और नष्ट होने वाला भी नहीं। यह निर्वकार रूप से नित्य निरंतर जैसा है वैसा ही रहने वाला है। इसीलिए यह शरीरी के कारण शौक नहीं करना चाहिए।
अर्जुन समक्ष युद्ध का प्रसंग होने से यहां शरीरी को मारने मरने की क्रिया से रहित दर्शाने में आया है वास्तव में यह सारी क्रिया से रहित हैं।
यह शरीरी मारने वाला क्यों नहीं है? इसका उत्तर अगले श्लोक में हम देखेंगे।
FAQs
क्या आत्मा सच में मरती है या मारती है?
नहीं, भगवद गीता के अनुसार आत्मा न तो किसी को मारती है, न ही स्वयं मारी जा सकती है। यह शाश्वत, अविनाशी और क्रियाओं से परे है।
क्या आत्मा को कोई विकृति या परिवर्तन हो सकता है?
नहीं, आत्मा में कभी कोई विकृति या परिवर्तन नहीं होता। वह न सृजन के अधीन है और न ही विनाश के। वह नित्य, शुद्ध और अपरिवर्तनशील है।
अगर आत्मा अमर है, तो फिर मृत्यु का क्या अर्थ है?
मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है। आत्मा शरीर का परित्याग कर एक नया शरीर ग्रहण करती है, जैसे हम पुराने कपड़े छोड़कर नए कपड़े पहनते हैं।
भगवद गीता इस श्लोक में कौन-सा संदेश देती है?
यह श्लोक हमें सिखाता है कि आत्मा अमर है, अतः किसी के मरने या मारने से शोक करना उचित नहीं है। यह दृष्टिकोण हमें वैराग्य और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।