क्या अंतिम समय में भी शांति पाई जा सकती है?

क्या अंतिम समय में भी शांति पाई जा सकती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 72

एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति |
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति || 72 ||

अर्थात भगवान कहते हैं, हे पृथानंदन! यह ब्रह्म अवस्था है। इसे प्राप्त करके कोई कभी आसक्त नहीं होता। यदि अंत में भी कोई इसी अवस्था में रहे, तो उसे निर्वाण (शांति) ब्रह्म की प्राप्ति हो जाती है।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 72 Meaning in hindi

कैसे पहुंचे उस अवस्था तक जहाँ केवल ‘ब्रह्म’ शेष रह जाए?

एषा ब्राह्मी स्थिति:

यह ब्राह्मी अवस्था है, अर्थात ब्रह्म को प्राप्त व्यक्ति की अवस्था। जब अहंकारशून्यता के कारण व्यक्तित्व लुप्त हो जाता है, तो उसकी अवस्था स्वतः ही ब्रह्म हो जाती है। क्योंकि व्यक्तित्व का अस्तित्व संसार से सम्बन्ध रखने से ही होता है। उस सम्बन्ध को पूर्णतः त्याग देने पर योगी की अपनी कोई व्यक्तिगत अवस्था नहीं रह जाती।

भगवान ने अर्जुन से कहा, ‘जब तुम्हारी बुद्धि मोहरूपी कीचड़ और श्रवणविरुद्ध ज्ञान को पार कर जाएगी, तब तुम योग को प्राप्त हो जाओगे।’ यह सुनकर अर्जुन के मन में जिज्ञासा हुई कि वह अवस्था कैसी होगी। इस संबंध में अर्जुन ने निश्चय ज्ञान के विषय में चार प्रश्न पूछे। चारों प्रश्नों के उत्तर देते हुए भगवान ने यहाँ उस अवस्था को ब्राह्मी अवस्था बताया है। तात्पर्य यह है कि वह व्यष्टि अवस्था नहीं है, अर्थात् उसमें व्यष्टित्व नहीं है। वह नित्य योग की प्राप्ति है। उसमें केवल एक तत्त्व शेष रह जाता है। इसी बात की ओर ध्यान दिलाने के लिए यहाँ ‘पार्थ’ शब्द दिया गया है।

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क्या अहंकार मिटने से भ्रम और मोह समाप्त हो सकता है?

नैनां प्राप्य विमुह्यति

जब तक अहंकार शरीर में रहता है, तब तक मोहित होने की संभावना रहती है। लेकिन जब अहंकार पूर्णतया अनुपस्थित हो जाता है और ब्रह्म में अपनी स्थिति का अनुभव हो जाता है, तब व्यक्तित्व के टूट जाने से फिर कभी मोहित होने की संभावना नहीं रहती। सत्य और असत्य को ठीक से न जानना मोह है। तात्पर्य यह है कि सत्य होते हुए भी असत्य के साथ अपने को एक मानना मोह है। जब साधक असत्य को ठीक से जान लेता है, तब असत्य से उसका संबंध टूट जाता है। और सत्य में अपनी वास्तविक स्थिति का अनुभव हो जाता है। इस स्थिति का अनुभव करने के बाद व्यक्ति कभी मोहित नहीं होता।

क्या अंतिम समय में भगवान का स्मरण मोक्ष दिला सकता है?

स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति

यह मानव शरीर परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसीलिए भगवान यह अवसर देते हैं कि यदि कोई व्यक्ति सबसे साधारण और सबसे पापी भी हो, तो भी यदि वह अंत समय में भी परमात्मा में अपना स्थान स्थापित कर ले, अर्थात अपने को जडता से अलग कर ले, तो वह भी निर्वाण (शांति) ब्रह्म को प्राप्त हो जाएगा, वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाएगा। भगवान ने सातवें अध्याय के तीसवें श्लोक में यही बात कही है कि ‘परमात्मा, परमेश्वर और परम ज्ञाता एक ही परमेश्वर हैं – जो इस मृत्युकाल में भी मुझे जानते हैं, वे मुझे यथार्थ रूप से जानते हैं, अर्थात मुझे प्राप्त करते हैं।’ आठवें अध्याय के पाँचवें श्लोक में कहा है कि ‘यदि कोई अंत समय में मेरा स्मरण करता हुआ प्राण त्यागता है, तो वह मुझे ही प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।’

FAQs

क्या मृत्यु के समय भी मोक्ष या शांति संभव है?

हाँ, यदि व्यक्ति जीवन के अंतिम क्षणों में भी ब्रह्म की स्थिति (ब्रह्म स्थिति) में स्थित हो जाए — यानी अहंकार, मोह और आसक्ति से मुक्त होकर परमात्मा का स्मरण करे — तो वह ब्रह्मनिर्वाण (मोक्ष व शांति) को प्राप्त कर सकता है।

क्या पापी व्यक्ति भी अंतिम समय में मोक्ष प्राप्त कर सकता है?

हाँ, भगवद गीता के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अंत समय में भी परमात्मा का स्मरण करता है और ब्रह्मी स्थिति में प्रवेश करता है, तो वह ब्रह्मनिर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है, चाहे वह पहले कितना भी पापी क्यों न रहा हो।

अहंकार खत्म होने से मोक्ष कैसे मिलता है?

अहंकार का लोप होने से व्यक्ति ‘मैं’ और ‘मेरा’ के भाव से मुक्त हो जाता है, और इसी से ब्रह्मी स्थिति प्राप्त होती है। यही स्थिति शाश्वत शांति और मोक्ष का मार्ग है।

जीवनभर साधना जरूरी है या अंतिम क्षण भी पर्याप्त है?

जीवनभर साधना व्यक्ति को स्थिरता देती है, लेकिन यदि कोई अंत समय में भी सच्चे भाव से आत्मा और परमात्मा का स्मरण करे, तो वह मोक्ष पा सकता है।

क्या अंतिम समय में भी शांति पाई जा सकती है?

हाँ, यदि व्यक्ति मृत्यु के समय अहंकार, मोह और आसक्ति से मुक्त होकर परमात्मा का स्मरण करता है, तो वह ब्रह्मी स्थिति को प्राप्त कर सकता है और मोक्ष व शाश्वत शांति पा सकता है।

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