
Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 4
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते |
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति || 4 ||
अर्थात भगवान कहते हैं, मनुष्य न तो कर्म आरंभ किए बिना निष्कर्मता को प्राप्त होता है, न ही कर्मों का त्याग करने मात्र से सिद्धि को प्राप्त होता है।
shrimad Bhagavad Gita Chapter 3 Shloka 4 Meaning in Hindi
क्या बिना स्वार्थ के काम करना आज संभव है?
इस कर्म योग में कर्म करना बहुत आवश्यक है। क्योंकि कर्म योग की प्राप्ति केवल इच्छा रहित होकर कर्म करने से ही होती है। यह सिद्धि मनुष्य को बिना कर्म किए प्राप्त नहीं हो सकती। मनुष्य के हृदय में जो कर्म करने की प्रवृत्ति रहती है, उसे शांत करने के लिए इच्छाओं का त्याग करके कर्तव्य कर्म करना आवश्यक है। इच्छाओं सहित कर्म करने से यह प्रवृत्ति समाप्त नहीं होती, बल्कि बढती है।
क्या लगातार कर्म करते रहने से बंधन मुक्त हुआ जा सकता है?
पद का आशय यह है कि कर्मयोग का अभ्यास करने वाला व्यक्ति निरन्तर कर्म करते रहने से निष्कर्मता को प्राप्त होता है। जिस अवस्था में व्यक्ति के कर्म अकर्मता हो जाते हैं, अर्थात् वे बंधते नहीं, उसे ‘निष्कर्मता’ कहते हैं।
निष्काम भाव से किए गए कर्मों में फल देने की शक्ति सर्वथा नहीं होती, जैसे बीज को भूनने या उबालने से उसमें से पुनः अंकुरित होने की शक्ति सर्वथा नष्ट हो जाती है। अतः निष्कर्मता व्यक्ति के कर्मों में उसे पुनः जन्म-मरण के चक्र में घुमाने की शक्ति नहीं होती।
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कामना का त्याग तभी हो सकता है जब सभी कर्म दूसरों की सेवा के लिए किए जाएं, अपने लिए नहीं। क्योंकि कर्म का संबंध संसार से है और स्वयं (स्वरूप) का संबंध परमात्मा से है। कर्म का स्वयं से कोई संबंध नहीं है। इसलिए जब तक हम अपने लिए कर्म नहीं करेंगे, कामना का त्याग नहीं होगा और जब तक कामना का त्याग नहीं होगा, निष्कर्मता की प्राप्ति नहीं होगी।
क्या संन्यास ही सफलता का मार्ग है या अहंकार का त्याग?
इस श्लोक की प्रस्तावना में भगवान ने कर्मयोग की दृष्टि से कहा है कि कर्म आरम्भ किये बिना कर्मयोगी निष्कर्म को प्राप्त नहीं होता। अब श्लोक के उत्तरार्ध में सांख्ययोग की दृष्टि से कहा है कि केवल रूप कर्म का त्याग करने से सांख्ययोगी सिद्धि को प्राप्त नहीं होता। सिद्धि प्राप्त करने के लिए उसे कर्तापन (अहंकार) का त्याग करना होगा। अतः सांख्ययोगी के लिए स्वरूप कर्म का त्याग मुख्य बात नहीं है, अपितु अहंकार का त्याग मुख्य बात है।
सांख्ययोग में कर्म किया जा सकता है और एक सीमा तक कर्म का त्याग भी किया जा सकता है, परन्तु कर्मयोग में सिद्धि प्राप्त करने के लिए कर्म करना आवश्यक है।
FAQs
क्या बिना कामना के किया गया कर्म ही मोक्ष का मार्ग है?
हाँ, भगवद गीता के अनुसार निष्काम भाव से किया गया कर्म ही व्यक्ति को बंधन मुक्त करता है और मोक्ष की ओर ले जाता है।
क्या सिर्फ कर्म त्याग देने से सिद्धि प्राप्त हो सकती है?
नहीं, गीता स्पष्ट कहती है कि केवल संन्यास या कर्म-त्याग से सिद्धि नहीं मिलती। अहंकार और फल की आसक्ति का त्याग आवश्यक है।
क्या आज के जीवन में सेवा भावना से कर्म करना संभव है?
हां, यदि व्यक्ति अपने कार्यों को केवल आत्म-लाभ की बजाय दूसरों की भलाई के लिए करे, तो वह कर्मयोग का अभ्यास कर सकता है।
क्या ऑफिस या व्यवसाय में भी निष्कर्मता संभव है?
बिलकुल, यदि हम अपने कार्य को कर्तव्य मानकर करें और फल की चिंता किए बिना सेवा-भाव से करें, तो कर्म बंधन नहीं बनते।
क्या कर्म किए बिना निष्कर्मता और सिद्धि संभव है?
नहीं, कर्म किए बिना न तो निष्कर्मता प्राप्त हो सकती है और न ही सिद्धि। भगवद गीता के अनुसार, निष्काम भाव से निरंतर कर्म करना ही व्यक्ति को बंधनों से मुक्त कर सिद्धि की ओर ले जाता है।