कामाख्या मंदिर : रहस्य, इतिहास और महत्व

Kamakhya Mandir

कामाख्या मंदिर का परिचय-

Kamakhya Mandir असम के गुवाहाटी में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और है । इस मंदिर की मान्यता इतनी प्रबल है कि हर साल हजारों भक्त यहाँ माँ के दर्शन के लिए आते हैं। Kamakhya Mandir नीलांचल पर्वत पर स्थित है और इसे तांत्रिक सिद्धियों का प्रमुख केंद्र माना जाता है। शक्ति साधक, तांत्रिक और श्रद्धालु यहाँ विशेष रूप से अंबुबाची मेले के दौरान एकत्र होते हैं। यह मंदिर के निर्माण की अद्भुत वास्तुकला और रहस्यमयी परंपराएँ भी इसे अद्वितीय बनाती हैं। इस मंदिर को न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए भी जाना जाता है।

कामाख्या मंदिर का इतिहास-

1. प्राचीन काल

कामाख्या मंदिर का इतिहास पुराना और रहस्यमय है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 8वीं-9वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। हालांकि, यह समय-समय पर क्षतिग्रस्त होता रहा और कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।

 2. मध्यकालीन काल

मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण कोच राजवंश के राजा नर नारायण ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। इस क्षेत्र पर कई शासकों का शासन रहा, जिनमें पाल वंश, सेन वंश, अहोम वंश आदि शामिल हैं। कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, इस मंदिर का उल्लेख 10वीं-11वीं शताब्दी के तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है, जिससे पता चलता है कि यह स्थल प्राचीन काल से ही शक्ति उपासकों के लिए महत्वपूर्ण रहा है।

पौराणिक मान्यता और कथा-

कामाख्या मंदिर से जुड़ी सबसे प्रमुख पौराणिक कथा देवी सती और भगवान शिव से संबंधित है। कहा जाता है कि जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, तो माता सती ने अपमान सहन न कर पाने के कारण स्वयं को यज्ञ में भस्म कर लिया। इससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और माता सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इस स्थिति को देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया, जिससे ये विभिन्न स्थानों पर गिर गए। Kamakhya Mandir वह स्थान है जहाँ माता सती का योनि भाग गिरा था। इसी कारण यह स्थल विशेष रूप से स्त्री ऊर्जा (शक्ति) का प्रतीक माना जाता है।

मंदिर की वास्तुकला-

Kamakhya Mandir की वास्तुकला असम के पारंपरिक शैलियों के साथ-साथ हिंदू मंदिर निर्माण शैली का मिश्रण है।

1.मुख्य संरचना: 

मंदिर में एक गुंबदनुमा निर्माण है जिसे “शिखर” कहते हैं। यह नागर और असमिया वास्तुकला का मिश्रण प्रस्तुत करता है। इसका मुख्य गुंबद मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखता है, जो इसे अनोखा बनाता है।

2.गर्भगृह: मंदिर का सबसे पवित्र स्थान, जहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि माँ कामाख्या की प्रतीकात्मक “योनि कुंड” है, जो प्राकृतिक पत्थर से बनी है और एक जलधारा से सदैव गीली रहती है।  यहाँ एक प्राकृतिक पत्थर की दरार है जिसे माँ कामाख्या का प्रतीक माना जाता है। यह स्थान हमेशा जल से भरा रहता है और इसे माता का दिव्य स्वरूप माना जाता है।

3.मंडप: मुख्य मंदिर के सामने एक विशाल परिसर है जहाँ भक्त पूजा और ध्यान करते हैं ।

4.अन्य मंदिर: मुख्य मंदिर परिसर में भगवती काली, तारा, भुवनेश्वरी, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी आदि की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।

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कामाख्या मंदिर का धार्मिक महत्व-

Kamakhya Temple को तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहाँ हर साल हजारों साधक शक्ति उपासना और तंत्र-मंत्र की साधना के लिए आते हैं।

शक्तिपीठों में स्थान – Kamakhya Mandir 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी की योनि और गर्भ गिरे थे, इसलिए इसे स्त्री ऊर्जा और मातृत्व शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

तंत्र साधना का केंद्र – कामाख्या मंदिर को तंत्र साधना का सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। मंदिर परिसर में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं, खासकर अंबुबाची मेले और काली पूजा के दौरान। मंदिर में माँ काली, तारा, छिन्नमस्ता जैसी दस महाविद्याओं की साधना विशेष रूप से की जाती है।

अंबुबाची मेला और रहस्य

Kamakhya Temple का सबसे प्रसिद्ध त्योहार अंबुबाची मेला है, जिसे “पूर्वी भारत का कुंभ मेला” भी कहा जाता है। यह जून महीने में चार दिनों तक मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान माता कामाख्या को मासिक धर्म होता है, इसलिए मंदिर के दरवाजे तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं। चौथे दिन मंदिर के पट खुलते हैं और भक्तों को प्रसाद के रूप में माता के रक्त-सिक्त वस्त्र दिए जाते हैं।

दुर्गा पूजा और नवरात्रि

दुर्गा पूजा और नवरात्रि के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इस समय यहाँ भारी संख्या में भक्तगण आते हैं।

मनसा पूजा

यह पूजा विशेष रूप से नाग देवता और देवी मनसा को समर्पित होती है। यह पूजा जुलाई-अगस्त के महीने में होती है।

मेला क्यों मनाया जाता है?

माना जाता है कि इस समय माँ कामाख्या रजस्वला (मासिक धर्म) होती हैं और इस दौरान मंदिर के गर्भगृह को चार दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। इस दौरान कोई भी पूजा-पाठ नहीं होता। चार दिन बाद मंदिर को खोलकर भक्तों को एक विशेष लाल रंग का कपड़ा “प्रसाद” के रूप में दिया जाता है, जिसे माँ के मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है।

क्या यह वैज्ञानिक रूप से संभव है?

अस्थायी जलधारा से गर्भगृह की चट्टानें लाल हो जाती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि माँ कामाख्या स्वयं रजस्वला हैं। हालाँकि, वैज्ञानिक रूप से यह जल के खनिजों की प्रक्रिया हो सकती है।

कामाख्या मंदिर में पूजा विधियाँ-

कामाख्या मंदिर में विभिन्न प्रकार की पूजा-अर्चना की जाती है।

साधारण दर्शन – मंदिर में प्रवेश कर माँ कामाख्या के दर्शन किए जाते हैं।

विशेष पूजा – भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं।

बलि प्रथा – यहाँ अब भी पशु बलि की परंपरा है, विशेषकर बकरी और भैंसे की बलि दी जाती है।

कामाख्या मंदिर में दर्शन और खुलने का समय

सुबह: 5:30 AM – 1:00 PM

शाम: 2:30 PM – 5:30 PM

Note: विशेष पूजा और त्योहारों के समय मंदिर का समय बदल सकता है।

कैसे पहुँचे कामाख्या मंदिर?

1. हवाई मार्ग – गुवाहाटी का लोकप्रिया गोपीनाथ बोरदोलोई हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 25  किमी दूर है।

2. रेल मार्ग – गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से कामाख्या मंदिर लगभग 8 किमी दूर है।स्टेशन से टैक्सी, बस या ऑटो द्वारा मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।

3. सड़क मार्ग – असम के किसी भी शहर से बस या टैक्सी के माध्यम से मंदिर आसानी से पहुँचा जा सकता यह  सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। है। 

कामाख्या मंदिर का आध्यात्मिक महत्व-

कामाख्या मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक ऊर्जा केंद्र भी है। यहाँ ध्यान और साधना करने से मानसिक शांति मिलती है। यह स्थल शक्ति ऊर्जा (फेमिनिन एनर्जी) का केंद्र माना जाता है, जिससे भक्तों को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। तांत्रिक परंपरा के अनुसार, यहाँ साधना करने से सिद्धि प्राप्त हो सकती है।
अगर आप आध्यात्मिकता, तंत्र साधना और देवी आराधना में रुचि रखते हैं, तो एक बार कामाख्या मंदिर अवश्य जाना चाहिए।


1.कामाख्या मंदिर कहाँ है?

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर में स्थित है। यह मंदिर नीलाचल पहाड़ी पर बनाया गया है।

2. कामाख्या मंदिर का महत्व क्या है?

कामाख्या मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है, जो शक्ति की एक प्रमुख रूप है। इस मंदिर का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह ५१ शक्ति पीठों में से एक है, जहां देवी सती की योनि गिराई थी।

3. कामाख्या मंदिर की विशेषता क्या है?

कामाख्या मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी कामाख्या की कोई मूर्ति नहीं है। इसके बजाय, यहाँ एक शिला है जिसे देवी की योनि के रूप में पूजा जाता है।

4. कामाख्या मंदिर में पूजा कैसे होती है?

कामाख्या मंदिर में पूजा विधि बहुत ही विशेष है। यहाँ पूजा के दौरान देवी कामाख्या को लाल कपड़े, लाल फूल और सिंदूर चढ़ाया जाता है। इसके अलावा, यहाँ भक्तों को प्रसाद के रूप में लाल चावल भी दिए जाते हैं।

5.कामाख्या मंदिर में अम्बुबाची मेला क्या है?

कामाख्या मंदिर में अम्बुबाची मेला एक विशेष त्योहार है जो हर साल आषाढ़ मास में मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, मंदिर की शिला को देवी कामाख्या की मासिक धर्म की अवस्था में माना जाता है और इस दौरान मंदिर बंद रहता है। इस त्योहार के दौरान भक्तों को प्रसाद के रूप में लाल चावल और सिंदूर दिए जाते हैं।

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