
Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi 2025 : सच्चे प्रेम और सतीत्व की अद्भुत कहानी
करवा चौथ का व्रत हर सुहागिन स्त्री के लिए सबसे पवित्र और प्रिय पर्वों में से एक है। यह दिन पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और दांपत्य सुख की कामना के लिए रखा जाता है। इस व्रत में महिलाएं निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही जल ग्रहण करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवा चौथ का यह व्रत क्यों और कैसे शुरू हुआ? इसकी पीछे की कहानी बेहद प्रेरणादायक और भावनाओं से भरी है। आइए जानते हैं — करवा चौथ की संपूर्ण पौराणिक कथा।
करवा और उसके भाइयों की कहानी
बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे और एक प्यारी बेटी थी — करवा। करवा अपने भाइयों की आँखों का तारा थी। भाई उसे इतना प्यार करते थे कि पहले बहन को खाना खिलाते और बाद में खुद भोजन करते। एक बार करवा अपनी ससुराल से मायके आई। उस दिन करवा चौथ का व्रत था। वह निर्जल उपवास पर थी और पूरे दिन भगवान से अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना कर रही थी।
चंद्रमा का इंतज़ार और भाई की गलती
शाम ढलने लगी, चाँद निकलने में देर थी। करवा भूख-प्यास से व्याकुल थी लेकिन उसका संकल्प अटूट था। छोटा भाई अपनी बहन की हालत देखकर व्याकुल हो गया। वह एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गया और वहां एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर ऐसा लगा जैसे *चांद निकल आया हो!
भाई ने आकर कहा,
“बहन! चाँद निकल आया है, अब अर्घ्य देकर भोजन कर लो।” करवा ने चाँद देखा, अर्घ्य दिया और भोजन करने बैठ गई।
व्रत भंग और पति की मृत्यु का समाचार
जैसे ही करवा ने पहला निवाला लिया, उसे छींक आ गई। दूसरा निवाला लिया तो उसमें बाल निकल आया। और जैसे ही तीसरा निवाला मुँह में डालने लगी, उसके पति की मृत्यु का समाचार आ गया। वह स्तब्ध रह गई। उसकी भाभी ने बताया कि उसने असली चाँद को देखे बिना व्रत तोड़ा, इसलिए देवता उससे रुष्ट हो गए और यह विपत्ति आई।
करवा की तपस्या और अटूट निष्ठा
करवा ने अपने पति का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया। वह एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास बैठी रही — न भोजन किया, न जल ग्रहण किया। उसने अपने सतीत्व और भक्ति से यह प्रण लिया कि वह अपने पति को पुनर्जीवित करेगी। दिन-रात वह भगवान से प्रार्थना करती रही।
अगले वर्ष का करवा चौथ और चमत्कार
एक वर्ष बीत गया। फिर से करवा चौथ का दिन आया। घर की सभी भाभियाँ व्रत रख रही थीं। वे करवा से आशीर्वाद लेने आईं।
करवा हर भाभी से कहती —
“यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो,
मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो।”
हर भाभी अगली भाभी की ओर भेज देती। आखिर में सबसे छोटी भाभी आई — वही जिसने छल से उसका व्रत भंग कराया था।
करवा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली —
“जब तक मेरे पति जीवित न हो जाएं, मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी।”
देवी कृपा और पुनर्जीवन का चमत्कार
छोटी भाभी करवा की निष्ठा और भक्ति देखकर पसीज गई। उसने अपनी उंगली चीरकर अमृत की एक बूंद करवा के पति के मुँह में डाल दी। क्षणभर में उसका पति जीवित हो गया! पूरा घर खुशियों से भर गया। देवता प्रसन्न हुए और करवा को चिरसुहागिन का आशीर्वाद मिला।
यह कथा हमें सिखाती है कि —
सच्चा प्रेम, निष्ठा और विश्वास हर कठिनाई को मात दे सकता है।
करवा चौथ केवल व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के अटूट संबंध और आत्मिक प्रेम का प्रतीक है।
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