
कोणार्क सूर्य मंदिर के कुछ तथ्य :
कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा राज्य में स्थित एक भव्य ऐतिहासिक मंदिर है, जिसे सूर्य देवता को समर्पित किया गया है। इसे भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का एक अनूठा उदाहरण माना जाता है। यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला, नक्काशी और खगोलीय गणना के लिए प्रसिद्ध है। इसे “ब्लैक पैगोडा” (Black Pagoda) भी कहा जाता था, क्योंकि यह काले पत्थरों से बना है और दूर से देखने पर यह काला दिखाई देता था। 1984 में यूनेस्को (UNESCO) ने इस मंदिर को विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में मान्यता दी। इस मंदिर को 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर अपने अद्भुत वास्तुशिल्प, और रथ के आकार की संरचना के लिए प्रसिद्ध है।
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास:
निर्माण का काल और उद्देश्य
यह मंदिर सूर्य देव की पूजा के लिए बनाया गया था और साथ ही यह गंग वंश की समृद्धि और शक्ति का प्रतीक भी था।कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंह देव प्रथम (1238-1250 ई.) ने करवाया था। इस मंदिर का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के विवरणों में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण लगभग 12 वर्षों में पूरा हुआ। कुछ ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर के निर्माण में 1200 शिल्पकार लगे थे, और उनके प्रमुख शिल्पकार का नाम विशु महाराणा था। एक किंवदंती यह भी कहती है कि उनके 12 वर्षीय पुत्र धर्मपद ने मंदिर की सबसे जटिल समस्या का हल निकाला था, लेकिन उसने स्वयं को समुद्र में समर्पित कर दिया ताकि राजा और शिल्पकारों को दंड न मिले।
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कोणार्क सूर्य मंदिर वास्तुकला और संरचना:
मुख्य विशेषताएँ
1. रथ के पहिए – इन 24 पहियों को इतनी बारीकी से तराशा गया है कि वे दिन के समय को दर्शाने के लिए सूर्य घड़ी (संडायल) के रूप में भी काम करते हैं। वास्तुकला और संरचना कोणार्क सूर्य मंदिर को एक विशाल रथ (सूर्य देव का रथ) के रूप में बनाया गया है। इस रथ में कुल 24 विशाल पहिए हैं और इसे सात घोड़े खींच रहे हैं।
2. सात घोड़े – ये सात घोड़े सप्ताह के सात दिनों को दर्शाते हैं कि सूर्य देव पूरे ब्रह्मांड में अपनी यात्रा कर रहे हैं।
3. मुख्य गर्भगृह (संकटावार) – यह मंदिर का प्रमुख भाग था, लेकिन अब यह नष्ट हो चुका है।
4. नृत्य मंडप (नटमंदिर) – यह वह स्थान था जहाँ नृत्य और संगीत का आयोजन किया जाता था। इस मंडप की दीवारों पर सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। कुछ मूर्तियों में समुद्र मंथन, देवी दुर्गा, नरसिंह अवतार और विभिन्न यक्ष-किन्नरों की झलक भी मिलती है। यहाँ कामसूत्र की शैली में कुछ मूर्तियाँ भी उकेरी गई हैं, जो तत्कालीन समाज की सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टि को दर्शाती हैं।
5. काम कला और मूर्तिकला – मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर अनेक प्रकार की आकृतियां उकेरी गई हैं, जिसमें देवी-देवताओं, नर्तकियों, पशु-पक्षियों और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने वाली मूर्तियाँ शामिल हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार इस तरह बनाया गया था कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरण सीधे मुख्य देव प्रतिमा पर पड़ती थी।
मंदिर निर्माण की कथा:
मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथन अनुसार, जब इसका निर्माण कार्य चल रहा था, तो मुख्य शिखर (कलश) को स्थापित करने में समस्या हो रही थी। तब एक 12 वर्षीय बालक धर्मपद ने इस समस्या का समाधान किया, लेकिन यह मानते हुए कि उसकी बुद्धिमत्ता निर्माणकर्ताओं के लिए चुनौती बन सकती है, उसने चंद्रभागा नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली।
मंदिर का पतन:
कोणार्क सूर्य मंदिर का मुख्य शिखर अब ध्वस्त हो चुका है। इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर पर मुगल आक्रमणों, प्राकृतिक आपदाओं और समय के प्रभाव के कारण यह क्षतिग्रस्त हुआ। ब्रिटिश शासन के दौरान इसे संरक्षित करने के प्रयास किए गए परन्तु पूरा न हो सका ।
धार्मिक और खगोलीय महत्व
1. सूर्य की किरणों की गणना
मंदिर को इस प्रकार निर्माण किया गया था कि सूर्य की किरणें सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग कोणों से मुख्य प्रतिमा पर आती थीं। यह प्राचीन भारतीय खगोल शास्त्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
2. पहियों की छाया से समय की गणना
मंदिर के विशाल पहिए सूर्य घड़ी (Sun Dial) का काम करते हैं। पहियों की छाया से समय का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर कैसे पहुँचे?
1 . हवाई मार्ग और रेल मार्ग
भुवनेश्वर हवाई अड्डा (Biju Patnaik International Airport) मंदिर से लगभग 68 किमी दूर है। यहाँ से कैब या बस द्वारा कोणार्क पहुँचा जा सकता है। पुरी रेलवे स्टेशन (35 किमी) कोणार्क के सबसे नजदीक है। पुरी से टैक्सी या लोकल बस द्वारा मंदिर पहुँचा जा सकता है।
2 . सड़क मार्ग
पुरी, भुवनेश्वर और कटक से नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। कोणार्क तक निजी टैक्सी और ऑटो-रिक्शा भी आसानी से मिल जाते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर के पास घूमने लायक जगहें:
- चंद्रभागा बीच (3 किमी) – एक सुंदर समुद्र तट, जहाँ सूर्य मंदिर से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं।
- पुरी जगन्नाथ मंदिर (35 किमी) – भगवान विष्णु के जगन्नाथ रूप को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर।
- गराज मंदिर, भुवनेश्वर (65 किमी) – भगवान शिव को समर्पित प्राचीन मंदिर।
- चिल्का झील (100 किमी) – एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील, जो प्रवासी पक्षियों और डॉल्फिन के लिए प्रसिद्ध है।