
Rama Ekadashi Vrat Katha : राजा मुचुकुंद चंद्रभागा और शोभन की अद्भुत पौराणिक कथा
Rama Ekadashi 2025 कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी (जिन्हें रमा भी कहा जाता है) को समर्पित है। रमा एकादशी को करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत केवल भौतिक सुख देने वाला नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने वाला और ईश्वर से जुड़ने का मार्ग भी है।
रमा एकादशी व्रत का महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत का महत्व धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था।
उन्होंने कहा कि –
“जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक रमा एकादशी का व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। उसके जीवन में लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है।”
रमा एकादशी का व्रत विष्णु जी के साथ-साथ माता लक्ष्मी को भी प्रसन्न करता है। इसीलिए इसे “अत्यंत पुण्यदायिनी एकादशी” कहा गया है।
राजा मुचुकुंद और चंद्रभागा की कथा
बहुत प्राचीन समय में एक धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ राजा हुआ करते थे – राजा मुचुकुंद। वे इंद्र, यम, कुबेर, वरुण और विभीषण जैसे देवताओं के प्रिय मित्र थे। राजा मुचुकुंद स्वयं भी एकादशी का व्रत अत्यंत श्रद्धा से करते थे और उन्होंने अपने राज्य की प्रजा को भी इसका पालन करने का आदेश दिया था। राजा की एक पुत्री थी – चंद्रभागा। वह बचपन से ही धार्मिक संस्कारों में पली-बढ़ी थी। जब वह योग्य आयु को पहुँची, तो उसका विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ।
पहली एकादशी और शोभन का व्रत
विवाह के बाद जब पहली बार रमा एकादशी आई, तो चंद्रभागा ने अपने पति से कहा —
“हमारे राज्य में एकादशी का व्रत अनिवार्य है, यह व्रत हमें अवश्य करना चाहिए।”
शोभन स्वभाव से कोमल और शारीरिक रूप से दुर्बल थे, फिर भी उन्होंने सहर्ष व्रत स्वीकार किया। परंतु यह व्रत निर्जला उपवास वाला था — न भोजन, न जल। शोभन इस कठोर तप को सहन नहीं कर पाए और व्रत के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।
चंद्रभागा का दुख और पिता की सांत्वना
पति की मृत्यु से चंद्रभागा का हृदय टूट गया।
राजा मुचुकुंद ने भी गहन शोक किया, लेकिन उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया —
“पुत्री, तुम्हारे पति ने एकादशी व्रत का पालन किया है। निश्चित रूप से उन्हें स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त हुआ होगा।”
राजा के ये शब्द चंद्रभागा के मन को कुछ शांति देने वाले थे, परंतु उसका हृदय अब भी अपने पति के मिलन की कामना में तड़प रहा था।
एकादशी के पुण्य से स्वर्ग की प्राप्ति
व्रत के प्रभाव से शोभन को मृत्यु के बाद मंदराचल पर्वत पर एक दिव्य नगरी प्राप्त हुई।वह अब देवताओं जैसी आभा वाले शरीर में, अप्सराओं से घिरे, वैभवशाली जीवन जीने लगे। वह सब कुछ था — धन, वैभव, संगीत, सुख — परंतु उनके हृदय में अब भी स्थिरता का अभाव था। उनकी नगरी अस्थिर थी, मानो किसी अदृश्य शक्ति के भरोसे टिकी हुई हो।
राजा मुचुकुंद की यात्रा मंदराचल पर्वत पर
कुछ समय बाद राजा मुचुकुंद एक बार मंदराचल पर्वत की यात्रा पर गए। वहाँ उन्होंने अपने मृत दामाद शोभन को दिव्य शरीर में जीवित देखा।
राजा आश्चर्यचकित होकर बोले —
“पुत्र! यह सब कैसे संभव हुआ?”
शोभन ने उत्तर दिया —
“राजन, यह सब रमा एकादशी व्रत के पुण्य का फल है। परंतु यह नगरी स्थिर नहीं है। यह केवल व्रत की शक्ति से टिके हुए है।”
चंद्रभागा की भक्ति और पुनर्मिलन
राजा मुचुकुंद ने यह सब अपनी पुत्री चंद्रभागा को बताया। यह सुनते ही चंद्रभागा ने निश्चय किया कि वह अपने पति के पास जाएँगी और उनके उद्धार का मार्ग बनाएँगी। वह ऋषि वामदेव के आश्रम पहुँचीं।
ऋषि ने उनकी निष्ठा, भक्ति और तप देखकर कहा, “पुत्री, तुम्हारे पुण्य तुम्हारे पति की अस्थिरता को स्थिर कर देंगे।” ऋषि के आशीर्वाद से चंद्रभागा मंदराचल पर्वत पहुँचीं। वहाँ उन्होंने अपने पति शोभन को देखा और कहा, “हे प्राणनाथ, मैंने आठ वर्ष की आयु से रमा एकादशी का व्रत किया है। मेरे इन सभी पुण्यों को आप स्वीकार करें।” जैसे ही शोभन ने उनके पुण्यों को स्वीकार किया, उनकी नगरी स्थिर और अटूट हो गई, दोनों पति-पत्नी दिव्य स्वरूप में पुनः एकत्र हो गए।
रमा एकादशी व्रत से मिलने वाला फल
रमा एकादशी व्रत करने वाला व्यक्ति न केवल अपने जीवन में सुख और शांति पाता है, बल्कि मृत्यु के बाद भी उसे मोक्ष और स्वर्गिक ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पालन करने से दरिद्रता, कष्ट और दुर्भाग्य का अंत होता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद सदैव उसके घर-परिवार में बना रहता है।
रमा एकादशी हमें यह सिखाती है कि श्रद्धा, नियम और विश्वास से किया गया छोटा सा व्रत भी जीवन को दिव्यता और शांति से भर सकता है। यह केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने की साधना है।
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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।








