Author name: Kajal Makwana

नमस्कार दर्शकों मित्रो मेरा नाम Kajal Makwana है, में एक ब्लॉगर और यूट्यूबर हूं, तथा में आध्यात्मिकता (Spirituality) की श्रेणी में कंटेंट लिखती हूं और यूट्यूब पर विडियोज भी बनाती हूं। मुझे सनातन धर्म के बारे में जानना, आध्यात्मिकता को गहराई से समझना और हमारे हिन्दू धर्म के शास्त्रों जैसे रामायण, महाभारत, श्रीमद भगवद गीता, पुराण, तथा वेदों को पढ़ना बहुत पसंद है। मेरा लक्ष्य है कि मेरे लेखों और वीडियो के माध्यम से आपको (दर्शकों) सच्ची आध्यात्मिकता का अनुभव करा सकू, और हम सब के मन में ईश्वर के प्रति प्रेम जागृत हो ऐसा कुछ कर सकू, तथा आध्यात्मिकता बढ़ने से समाज में शायद बुरे कर्म करने वाले कुछ समझे सके! और आने वाली पीढ़ी भी सनातन धर्म को गहराई से समझ सके। Follow me on: YouTube

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 64 65

क्या राग-द्वेष से मुक्ति ही सच्चा सुख है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 64 65 रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् |आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति || 64 ||प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते |प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते […]

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 62 63

क्या हमारे क्रोध का कारण हमारी इच्छाएँ हैं?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 62 63 ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते |सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62 ||क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: |स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 61

इंद्रियों को वश में करने का सही तरीका क्या है? गीता का दृष्टिकोण!

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 61 तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर: |वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 61

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 58 59 60

क्या साधक वास्तव में ‘इच्छा रहित’ हो सकता है? गीता क्या कहती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 58 59 60 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 58 ||विषया विनिवर्तन्ते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 57

क्या हमारे सुख-दुख की प्रतिक्रियाएं हमें अस्थिर बनाती हैं? गीता से जानें समाधान

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 57 य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 57 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 56

क्या आप दुःख में भी शांत रह सकते हैं? गीता बताती है कैसे!

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 56 दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: |वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 56 || अर्थात श्री भगवान बोले, ध्यान करने

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 55

क्या इच्छाओं का त्याग ही स्थिर बुद्धि की पहचान है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 55 श्रीभगवानुवाच |प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55 || अर्थात श्री भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 54

क्या आप स्थितप्रज्ञ हैं? जानिए भगवद गीता से स्थिर बुद्धि के लक्षण

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 54 अर्जुन उवाच |स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ||

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क्या योग का अर्थ है मतभेदों से ऊपर उठना?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 53 श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि || 53 || अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 52

रिश्तों और चाहतों से मुक्त होकर क्या मिल सकती है सच्ची शांति?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 52 यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च || 52 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 51

जन्म-मरण के बंधन से कैसे मुक्त हों?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 51 कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: |जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् || 51 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 50

क्या समता ही कर्म-कुशलता है? गीता श्लोक 2/50 का महत्व

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 50 बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते | तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् || 50 || अर्थात भगवान

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