Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 32
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ ३२॥
अर्थात भगवान कहते है, अपनी इच्छा से जीती गई लड़ाई स्वर्ग का खुला द्वार है। हे पृथानन्दन! वे क्षत्रिय बहुत प्रसन्न होते हैं, जिन्हें ऐसा युद्ध प्राप्त होता है।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 32 Meaning in hindi
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्
पांडवों के साथ जुआ खेलते समय दुर्योधन ने शर्त रखी थी कि यदि वह हार गये तो उन्हें बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ेगा। तेरहवें वर्ष के बाद तुम्हें अपना राज्य मिल जायेगा। लेकिन यदि हम लोग(कौरव) अज्ञानतावश तुम्हारा पर्दाफाश कर देंगे तो तुम्हें दूसरी बार बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा। जुए में हारने के कारण शर्त के अनुसार पांडवों को बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ा। बाद में जब उन्होंने अपना राज्य मांगा तो दुर्योधन ने कहा कि वह बिना युद्ध के सुई के नॉक जितनी जमीन भी नहीं देगा। दुर्योधन के कहने के बावजूद पांडवों ने बार-बार संधि का प्रस्ताव रखा, लेकिन दुर्योधन ने पांडवों से संधि स्वीकार नहीं की, जिसके कारण भगवान अर्जुन से कहते हैं कि तुम लोगों ने अपने दम पर यह युद्ध की तक हासिल है। जो क्षत्रिय अपने प्रयासों से जीते गए धर्मयुद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए मर जाता है, उसके लिए स्वर्ग का द्वार खुला रहता है।
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सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् क्यों भगवान ने युद्ध को स्वर्ग का द्वार कहा?
ऐसा धार्मिक युद्ध उन लोगों द्वारा हासिल किया गया है जिन्होंने इसे हासिल किया है। वह क्षत्रिय बहुत प्रसन्न है। यहां सुखी कहने का तात्पर्य यह है कि जो सुख अपने कर्तव्य पालन से मिलता है, वह सांसारिक सुख भोगने से नहीं है। यहां तक कि पशु-पक्षी भी सांसारिक सुखों का आनंद लेते हैं। जिन लोगों को अपने कर्तव्यों का पालन करने का अवसर मिला है। उन्हें बहुत भाग्यशाली माना जाना चाहिए।
युद्ध नहीं करने से कौनसी हानि होगी?? इसका वर्ण अगले चार श्लोकों में वर्णन करते है।
FAQs
इस श्लोक में भगवान कृष्ण ‘स्वर्ग का द्वार’ किसे कहते हैं?
भगवान कहते हैं कि धर्म के लिए लड़ा गया युद्ध ‘स्वर्ग का द्वार’ है। यानी जब कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करते हुए संघर्ष करता है, तो वही असली आत्मिक और आध्यात्मिक सफलता है।
इस श्लोक से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
हमें यह प्रेरणा मिलती है कि कठिन परिस्थितियाँ, जब नैतिक निर्णय लेने होते हैं, हमारे जीवन के सबसे बड़े मौके होते हैं आत्मिक रूप से विकसित होने के।
क्या आज के युग में भी ‘धर्मयुद्ध’ संभव है?
हां, आज का धर्मयुद्ध सत्य, ईमानदारी, और नैतिकता के लिए खड़े रहना है—चाहे ऑफिस हो, समाज हो या व्यक्तिगत जीवन। सच्चाई के लिए संघर्ष करना ही आज का धर्मयुद्ध है।