कर्मों का कर्ता कौन है – मनुष्य या ईश्वर?
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 14 न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥१४॥ अर्थात भगवान […]
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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 14 न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥१४॥ अर्थात भगवान […]
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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 13 सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी । नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥१३॥ अर्थात
कर्म न करते हुए भी सांख्य योगी कैसे सुखपूर्वक रहता है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 12 युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥१२॥ अर्थात भगवान कहते
निष्काम भाव से कर्म करने का रहस्य क्या है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 11 कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि । योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्ग त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥११॥ अर्थात भगवान कहते
कर्मयोगी और सामान्य मनुष्य के कर्मों में क्या अंतर है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 10 ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्ग त्यक्त्वा करोति यः । लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ।।१०।। अर्थात
क्या ईश्वर को अर्पित कर्म पाप से मुक्त करते हैं? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 8 & 9 नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् । पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्नाच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥८॥प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्
सांख्य योगी क्यों मानता है कि मैं कुछ नहीं करता? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 7 योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः ।सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥७॥ अर्थात भगवान अर्जुन को कहते
कर्मयोगी इन्द्रियों को वश में करके जीवन में क्या लाभ पाता है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 6 संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म चिरेणाधिगच्छति ॥६॥ अर्थात भगवान अर्जुन को कहते हैं, परन्तु
क्या संन्यास बिना कर्मयोग के संभव है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 5 यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते । एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स
सांख्य योग और कर्म योग में क्या है समानता? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 4 सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः । एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥४॥ अर्थात भगवान कहते हैं,
क्या सांख्य योग और कर्म योग के फल अलग-अलग हैं? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 3 ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति । निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते
कर्मयोगी और संन्यासी में क्या अंतर है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 2 श्रीभगवानुवाच ।संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥२॥ भगवान ने कहा – संन्यास (सांख्य
भगवान श्रीकृष्ण ने संन्यास से ऊपर कर्मयोग को क्यों बताया? Read Post »