Bhagavad Gita

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 27

क्या समाधि में इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाएँ पूरी तरह रुक जाती हैं

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 27 सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥२७॥ अर्थात भगवान कहते हैं, अन्य योगीजन समस्त इन्द्रियों […]

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26

गीता के अनुसार दैवयज्ञ और इन्द्रिय संयम रूपी यज्ञ क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 25 26 दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥२५॥श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति । शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 24

भोजन रूपी क्रिया को यज्ञ कैसे बनाया जा सकता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 24 ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।ब्रह्मव गन्तव्यं तेन ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥२४॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23

गीता के अनुसार सच्चा कर्मयोगी कौन कहलाता है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23 गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥२३॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जिसकी आसक्ति

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 22

क्या सफलता-असफलता में समभाव रखने से जीवन के तनाव से मुक्ति मिल सकती है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 22 यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः । समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥२२॥ अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 21

क्या निष्काम कर्मयोगी पाप से मुक्त रहता है? गीता का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 21 निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ॥२१॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जिस निष्काम

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 20

क्या आत्मा का वास्तव में कर्म और फल से कोई संबंध है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 20 त्यक्त्वा कर्मफलासङ्ग नित्यतृप्तो निराश्रयः ।कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ॥२०॥ अर्थात भगवान कहते हैं, जो

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 19

गीता के अनुसार सच्चा विद्वान किसे कहा गया है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 19 यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः । ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः ॥१९॥ अर्थात भगवान कहते हैं,

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Bhagava Gita Chapter 4 Verse 18

कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखने का रहस्य क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 18 कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः । स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥१८॥ अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 17

कर्म अकर्म और विकर्म का असली अर्थ क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 17 कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः । अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥१७॥ अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 16

कर्म और अकर्म में अंतर क्या है? गीता का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 16 किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः । तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥१६॥ अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 15

क्या मोक्ष प्राप्त होने पर भी कर्तव्य-कर्म करना आवश्यक है?

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 15 एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः । कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम् ।।१५।।

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