Bhagavad Gita

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 61

इंद्रियों को वश में करने का सही तरीका क्या है? गीता का दृष्टिकोण!

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 61 तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर: |वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 61 […]

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 58 59 60

क्या साधक वास्तव में ‘इच्छा रहित’ हो सकता है? गीता क्या कहती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 58 59 60 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 58 ||विषया विनिवर्तन्ते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 57

क्या हमारे सुख-दुख की प्रतिक्रियाएं हमें अस्थिर बनाती हैं? गीता से जानें समाधान

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 57 य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 57 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 56

क्या आप दुःख में भी शांत रह सकते हैं? गीता बताती है कैसे!

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 56 दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: |वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 56 || अर्थात श्री भगवान बोले, ध्यान करने

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 55

क्या इच्छाओं का त्याग ही स्थिर बुद्धि की पहचान है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 55 श्रीभगवानुवाच |प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55 || अर्थात श्री भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 54

क्या आप स्थितप्रज्ञ हैं? जानिए भगवद गीता से स्थिर बुद्धि के लक्षण

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 54 अर्जुन उवाच |स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ||

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क्या योग का अर्थ है मतभेदों से ऊपर उठना?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 53 श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि || 53 || अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 52

रिश्तों और चाहतों से मुक्त होकर क्या मिल सकती है सच्ची शांति?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 52 यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च || 52 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 51

जन्म-मरण के बंधन से कैसे मुक्त हों?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 51 कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: |जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् || 51 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 50

क्या समता ही कर्म-कुशलता है? गीता श्लोक 2/50 का महत्व

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 50 बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते | तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् || 50 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 49

आज के व्यस्त जीवन में समता का अभ्यास कैसे करें?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 49 दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: || 49 || अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 48

कर्म करते हुए कैसे पाएं शांति और समता?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 48 योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || 48

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