क्या अर्जुन का युद्ध से इनकार सही था?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 6

न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |
यानेव हत्वा न जिजीविषाम
स्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: || 6 ||

अर्थात् अर्जुन कहते है, हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना श्रेष्ठ है या न करना! और हम यह भी नहीं जानते कि हम उन्हें हरा देंगे या वे हमें हरा देंगे। धृतराष्ट्र के ही सम्बन्धी, जिन्हें हम मारकर जीवित भी नहीं रहना चाहते, वे ही हमारे सामने खड़े हैं।

क्या अर्जुन का युद्ध से इनकार सही था?

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 6 Meaning in hindi

न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयो

मैं दो चीजों के बीच निर्णय नहीं कर पा रहा हूं: मुझे लड़ना चाहिए या नहीं। क्योंकि आपके दृष्टिकोण से, युद्ध करना सर्वोत्तम है, लेकिन मेरे दृष्टिकोण से, चूंकि अपने गुरुओं की हत्या करना पाप है, इसलिए युद्ध न करना ही सर्वोत्तम है। इन दोनों पक्षों को देखते हुए मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि मेरे लिए कौन सा पक्ष सर्वोत्तम है। इस प्रकार उपर्युक्त श्लोकों में अर्जुन के मन में भगवान का पक्ष और अपना पक्ष दोनों समान हो गये हैं।

यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: :

यदि आपके आदेशानुसार युद्ध भी लड़ा जाए तो हमें नहीं मालूम कि हम उन्हें हरा देंगे या वे (दुर्योधन आदि) हमें हरा देंगे।

यहाँ अर्जुन को अपने बल पर अविश्वास नहीं है, अपितु भविष्य पर अविश्वास है, जैसे कि, कौन जानता है कि भविष्य में क्या होगा?

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यानेव हत्वा न जिजीविषाम :

हम अपने परिवारों को मारकर भी जीना नहीं चाहते है, राज्य का आनंद लेने, राज्य प्राप्त करने और अपने आदेशों का पालन करने की बात तो दूर रही! क्योंकि अगर हमारे परिवार मारे गए तो हम अपने जीवन का क्या करेंगे? हम अपने ही हाथों से अपने परिवार को नष्ट करने के बाद आराम से बैठकर चिंता और शौक में ही ही तो जिवन व्यतीत करेंगे, चिंता और शौक करके वियोग में दुख भोगकर हम जिना पसंद नहीं करेंगे।

स्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: (क्या अर्जुन का युद्ध से इनकार सही था?) :

हम जिनको मारकर जीना भी नहीं चाहते, वही घृतराष्ट्र के संबंधी हमारे सामने खड़े हैं। घृतराष्ट्र के सभी संबंधी हमारे कुटुंबी जन ही है। यह कुटुंबियों को मार कर हमारे जीने पे धिक्कार है।

अपने कर्तव्य का निर्णय करने के लिए खुद को असमर्थ पाकर अर्जुन व्याकुलतापूर्वक भगवान को अगले श्लोक में प्रार्थना करते हैं।

FAQs

भगवद गीता के श्लोक 2.6 में अर्जुन क्या कह रहे हैं?

श्लोक 2.6 में अर्जुन कहते हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि युद्ध करना उनके लिए सही है या नहीं। वे असमंजस में हैं कि अगर वे युद्ध करें तो जीतेंगे या हारेंगे, और यदि जीत भी गए तो भी उन्हें जीने की इच्छा नहीं है क्योंकि उन्हें अपने ही परिवारजनों को मारना पड़ेगा।

अर्जुन को भविष्य को लेकर कौन सा भय सता रहा है?

अर्जुन को अपने सामर्थ्य पर नहीं, बल्कि भविष्य पर अविश्वास है। उन्हें डर है कि युद्ध के परिणाम क्या होंगे—वे जीतेंगे या हारेंगे—इस अनिश्चितता ने उन्हें मानसिक रूप से विचलित कर दिया है।

क्या अर्जुन को अपनी शक्ति पर संदेह है?

नहीं, अर्जुन को अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर संदेह नहीं है। बल्कि उन्हें इस बात का डर है कि भविष्य में क्या होगा और युद्ध के परिणाम क्या होंगे।

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