Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 8
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्
यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् |
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् || 8 ||
अर्थात अर्जुन कहते हैं,यदि मैं पृथ्वी पर धन-धान्य से भरपूर और निष्कंटक राज्य तथा स्वर्ग में देवताओं का राज्य भी प्राप्त कर लूं, तो भी मैं नहीं देखता कि मेरा शोक, जो मेरी इन्द्रियों को सुखा देता है वो दूर हो जाएगा।

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 8 Meaning in hindi
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं :
यदि मुझे धन-धान्य से पूर्ण और निष्कंटक राज्य भी मिल जाए, अर्थात् ऐसा राज्य जहां प्रजा बहुत सुखी हो, प्रजा के पास बहुत धन-धान्य हो, किसी वस्तु की कमी न हो, तथा राज्य में कोई शत्रु न हो, तो भी मेरा दुःख दूर नहीं हो सकेगा।
सुराणामपि चाधिपत्यम् (क्या सफलता और दौलत से दुख मिटता है?) :
इस पृथ्वी लोक के तुच्छ सुखों का राज्य तो दूर, यदि मुझे इन्द्र का दिव्य राज्य भी मिल जाए, तो भी मेरा शोक, क्षोभ और चिन्ता दूर नहीं हो सकेगी।
अर्जुन ने पहले अध्याय में कहा था कि वह विजय नहीं चाहता, वह राज्य नहीं चाहता, और वह सुख भी नहीं चाहता, क्योंकि उस राज्य से क्या होगा? उन बलिदानों का क्या होगा? और अगर आप इस तरह जियेंगे तो क्या होगा? जिनके लिए हम राज्य, सुख और खुशी चाहते हैं, वे ही मरने के लिए तैयार खड़े हैं यहां अर्जुन कहते है कि, यदि मुझे पृथ्वी का धन-धान्य से युक्त, क्लेशों से रहित राज्य तथा देवताओं का प्रभुत्व भी प्राप्त हो जाए, तो भी मेरा दुःख दूर नहीं होगा, मैं उनके साथ सुखी नहीं रह सकूंगा। इससे पहले (अध्याय 1/V32-33 में) अर्जुन युद्ध से इसलिए अभिभूत हुए थे क्योंकि उसमें परिवार के प्रति प्रबल स्नेह की प्रवृत्ति थी, किन्तु यहाँ, वह जिस कष्ट का अनुभव कर रहे है, वह उसके अपने कल्याण की प्रवृत्ति के उदय के कारण है। अतः पिछले संस्करण और यहां के संस्करण में बहुत बडा अंतर है।
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न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् :
जब मैं अपने परिवार के सदस्यों के मरने के भय से इतना दुःखी हूँ, तो उनके मरने पर मुझे कितना अधिक दुःख होगा! यदि मैं राज्य के लिए शोक करता, तो वह शोक राज्य से मिलकर दूर हो जाता, परंतु राज्य के आगमन से परिवार के विनाश के भय से उत्पन्न दुःख कैसे दूर होगा? दुःख का मिटना तो दूर रहेगा, पर उससे अधिक शौक बढेगा। क्योंकि यदि युद्ध में सभी मर जाएंगे, तो जो राज्य मिलेगा, उसका उपभोग कौन करेगा, उससे लाभ कौन उठाएगा? इसलिए, यदि पृथ्वी का राज्य और स्वर्ग का शासक भी दे दिया जाए, तो भी इन्द्रियों को सुखा देने वाला शोक दूर नहीं किया जा सकता।
अर्जुन यहां पर संक्षिप्त में कह रहे हैं की, प्राकृत पदार्थ प्राप्त होने पर भी मेरा शौक दूर हो जाएगा, ऐसा में नहीं देख पा रहा हूं! इसके बाद अर्जुन अब क्या करते हैं? इसका वर्णन संजय अगले श्लोक में करते हैं।
FAQs
अर्जुन किस प्रकार के शोक की बात कर रहे हैं?
यह शोक उनके परिजनों के वध और भावनात्मक पीड़ा से जुड़ा है, जो उनकी इन्द्रियों को भी क्षीण कर रहा है।
क्या भौतिक सुख अर्जुन का दुःख दूर कर सकते हैं?
नहीं, अर्जुन स्पष्ट रूप से कहते हैं कि राज्य और ऐश्वर्य भी उनके दुःख को नहीं मिटा सकते
क्या पैसा और सफलता जीवन के हर दुःख का समाधान है?
नहीं, अर्जुन की तरह हम भी अनुभव करते हैं कि बहुत सारी भौतिक उपलब्धियाँ होने पर भी अंदर का दुःख दूर नहीं होता।
क्या मानसिक शांति बाहरी चीज़ों से मिलती है?
अर्जुन की बात से साफ है कि असली शांति और समाधान भीतर से आता है, बाहर की चीज़ें केवल थोड़ी देर के लिए राहत देती हैं।