Bhagavad Gita Life Lessons

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 3

कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है – ज्ञानयोग या कर्मयोग?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 3 श्रीभगवानुवाच |लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ |ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् || 3 || अर्थात […]

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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse1 2

अगर ज्ञान श्रेष्ठ है तो फिर कर्म क्यों करें?

Bhagavad gita Chapter 3 Verse 1 and 2 अर्जुन उवाच |ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन |तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 70

समुद्र जैसा संयम कैसे लाएं जीवन में? भगवद गीता से सीख

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 70 आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठंसमुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् |तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वेस शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ ७०॥ अर्थात भगवान

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इन्द्रियों को वश में करने से बुद्धि की स्थिरता कैसे प्राप्त होती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 68 तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 68 || अतः हे श्रेष्ठ! जिस

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bhagavad Gita Chapter 2 Verse 66

क्या अशांत मन वाला व्यक्ति सच्चा सुख पा सकता है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 66 नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् || 66 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 57

क्या हमारे सुख-दुख की प्रतिक्रियाएं हमें अस्थिर बनाती हैं? गीता से जानें समाधान

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 57 य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 57 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 51

जन्म-मरण के बंधन से कैसे मुक्त हों?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 51 कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: |जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् || 51 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 48

कर्म करते हुए कैसे पाएं शांति और समता?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 48 योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || 48

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 45

भगवद्गीता में विरक्त जीवन का महत्व क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 45 त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || 45 || अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 42 43

क्या सुख की तलाश आत्मज्ञान से दूर कर देती है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 42 43 यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: |वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: || 42 ||कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 41

क्या हमारे फोकस की कमी है बहुशाखा बुद्धि का परिणाम?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 41 व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् || 41 || अर्थात भगवान कहते हैं, हे

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 39

भगवद गीता में ‘समबुद्धि’ का रहस्य क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 39 एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु |बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि || 39

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