क्या सुख-दुख में समान रहना ही अमरता का मार्ग है?
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 15 यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते || 15 || […]
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Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 15 यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते || 15 || […]
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Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 14 मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा: |आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || 14 || अर्थात भगवान कहते हैं, हे कुंतीनंदन!
क्या इन्द्रियाँ ही हमारे सुख-दुख की जड हैं? गीता का उत्तर जानिए Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 12 न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः |न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत:
क्या हमारी असली पहचान शरीर से परे है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 11 श्रीभगवानुवाच |अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: || 11 || अर्थात प्रभु ने कहा,
क्या ममता और आसक्ति ही हमारे दुखों का मुख्य कारण हैं? गीता से जीवन का रहस्य Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 9 सञ्जय उवाच |एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप |न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ||
अर्जुन का यह निर्णय क्यों ? – ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा’ Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 8 न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् |अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् || 8 || अर्थात अर्जुन कहते
क्या सफलता और दौलत से दुख मिटता है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 7 कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव:पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: |यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मेशिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् || 7 ||
क्या भगवान से मार्गदर्शन मांगना ही सच्चा समर्पण है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 6 न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयोयद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |यानेव हत्वा न जिजीविषामस्तेऽवस्थिता: प्रमुखे
क्या अर्जुन का युद्ध से इनकार सही था? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 5 गुरूनहत्वा हि महानुभावान्श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैवभुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् || 5 || अर्थात
क्यों अर्जुन ने भिक्षा को गुरुओं की हत्या से श्रेष्ठ माना? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 4 अर्जुन उवाच |कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4 ||
क्या अर्जुन की तरह हम भी अपनों के खिलाफ फैसले लेने से डरते हैं? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 3 क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप || 3 || अर्थात
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नपुंसकता क्यों कहा? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 2 श्रीभगवानुवाच |कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन || 2 || अर्थात श्री भगवान बोले –
क्या कायरता धर्म स्वर्ग और यश से वंचित कर सकती है? Read Post »